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Thursday 14 February, 2013

निराला और वसंत

'  खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम' वसंत और कहां जीर्ण निराला , परंतु हिंदी में वसंत के स्‍मरण के साथ ही निराला का भी चेहरा सामने आता है ।वैसे वसंत पर लिखने वाले बहुत हैं ,परंतु वसंत से गंभीर साम्‍य बैठाने वाले निराला ही हैं ।निराला ने खुद भी वसंत की बहुत ही दृश्‍य-छवियों को सामने लाया है

रंग गयी पग-पग धन्‍य धरा,-
हुई जग जगमग मनोहरा ।

और कभी हुलसकर छायावाद के अन्‍य कवियों के साथ सुर मिलाते हैं

सखि ,वसन्‍त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्‍कर्ष छाया ।

एक जगह वे स्‍वयं ही वसंत की अपूर्णता ,स्थिरता से परेशान हैं ,और 'स्थिर मधु ऋतु कानन' के बाद आवाहन करते हैं

गरजो ,हे मन्‍द्र ,वज्र-स्‍वर
थर्राये   भूधर-भूधर
झरझर-झरझर धारा झर
पल्‍लव-पल्‍लव पर जीवन ।


परंतु उनकी आशाएं अभी भी वसंत से ही है । वसंत की उपस्थिति उनके दुख ,अपमान को कम करती है

अभी न होगा मेरा अन्‍त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्‍त-
अभी न होगा मेरा अन्‍त ।

हिंदी के मठों -गढों को यह कहने को विवश होते हैं निराला

'मैं ही वसन्‍त का अग्रदूत'
और हिंदी समाज ने दशकों बाद जाना कि हिंदी साहित्‍य में जो नए गंध ,नए रस ,नए पल्‍लव हैं ,उसका श्रोत कहां है  ?

निराला के लिए सबसे सही समय'निशा वासंती' है ,और अपने सर्वाधिक प्रिय के लिए भी वे 'मेरे वसंत की प्रथम गीति ' कहते हैं ।ऋतुओं में वसंत ही उनके काव्‍यकर्म को सर्वाधिक उद्बुद्ध करती है ।





Sunday 10 February, 2013

रवींद्र वर्मा की कविताएं



शावेज़ की चौथी चुनाव-विजय पर


शावेज ,‍मुबारक हो
तुमसे ज्‍़यादा
वेनेजुएला को
वेनेजुएला से ज्‍़यादा
लातिन अमेरिका को
लातिन अमेरिका से ज्‍़यादा
धरती को जो
घायल
कराह रही है

अपने चारो ओर गोल गोल
घूमती धरती घायल
थकी-सी लगती है
जैसे अमेरिका अचानक
बहुत भारी हो गया हो
उलार गाड़ी की तरह
उलार गाड़ी कब तक
उलार चलेगी


2 अमृत जयंती

यह अमृत जयंती की बात है:
मैंने अ को फोन किया-
उसने बताया कि उसका उपन्‍यास
कालजयी है ।
ब  ने कहा कि उसने
हिंदी कविता को वह दिया है जो
उसके पास नहीं था ।
स आलोचक था -उसने
सनातन फैसले दे दिए थे ।
सब अमर मरेंगे ।


मजा तब आया जब
मैंने पाया कि मैं भी
महान हूं ।फर्क
यही था कि मुझे यह भीतरी
फरेब पता था ।इसीलिए
मुझमें पेड़ की पत्‍ती की तरह
गिरने की उम्‍मीद
बाकी थी ।
(मासिक 'समकालीन सरोकार' जनवरी 2013 में)






(साभार 'समकालीन सरोकार' ,रवींद्र 
वर्मा