फेसबुक पर मिले राजेन्द्र यादव नामवर और कई मातवर
मैं कसम से कहता हूं
वे मेरे मित्र बन गए हैं
शायद वे मित्रधर्म निबाहेंगे
मेरी बुरी कविता भी छापेंगे
संभव हो बालसंगी गौरीशंकर का स्थान लें वो
मेरे कच्चे सूर को भी सराहे
बुखार में पारासिटामोल खिलाए
या मेरी पत्नी से सुलह कराएं
यही नहीं बद्रीनारायण गीत और धीरेन्द्र भी मिल गए हैं
वैसे उदयप्रकाश गौरीनाथ ने मुझे घास नहीं डाला है
या तो बहुत व्यस्त होंगे या तेलपानी का बोलबाला है
कुछ सुन्दरियों के साथ ही आशीष त्रिपाठी ने भी जबाव नही दिया है
वही जिसने नामवर के भाषण को चार किताब में बाइंड किया है
अजय तिवारी भी घमंडी है
दोस्ती है कि शब्जी मंडी है
कहॉ है गुरू गोपाल राय और विश्वनाथ त्रिपाठी
मित्र मिथिलेश और के के भी नही है
टेमा में रह रहे प्रेम भाई पता नही फेसबुक जानते हैं या नहीं
फुच्चु लुटकुन राघव और अशोक मित्र बढाने में व्यस्त हैं
पता नही जब राजेन्द्र यादव ने मेरी दोस्ती कबूल की होगी
तब क्या सोचा होगा
मुस्कुराया होगा
या ंंंंंंंंंंं
मेरे गुरू गोपाल राय और विश्वनाथ त्रिपाठी
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ReplyDeleteInteresting post !
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