क्या बात कही है साहब संपादक को साधे रहो। कभी कभी ऐसी रचनायें पढता हूं जो समझ में नहीं आतीं तब मै भी यही सोचता हूं
क्या बात कही है साहब संपादक को साधे रहो। कभी कभी ऐसी रचनायें पढता हूं जो समझ में नहीं आतीं तब मै भी यही सोचता हूं
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