Friday, 20 May 2011

हे नए कवि

हे नए कवि सबको साधे रहो
क्‍या प्रगति क्‍या प्रयोग
बस आलोचक को नाथे रहो
लिख कम बोल कम
गुरूजन सिर माथे रहो
छपो दिखो गुणो बंधु
बस संपादक को बांधे रहो

1 comment:

  1. क्या बात कही है साहब संपादक को साधे रहो। कभी कभी ऐसी रचनायें पढता हूं जो समझ में नहीं आतीं तब मै भी यही सोचता हूं

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