यह कोई खास कार्यक्रम नहीं था ।उत्तर भारत के कस्बों में निजी विद्यालय अपना वार्षिक कार्यक्रम लगभग एक ही रस्मों के साथ मनाते हैं ।सी0 रामचंद्र से लेकर ए आर रहमान तक के लोकप्रिय गीतों की धमक में कार्यक्रम की कमियॉ प्राय: छिप जाती है ।वैसे भी अपने बच्चे थे ,और अपना कार्यक्रम था ।अत: हम लोगों ने हाथ दुखने तक ताली पीटने का रस्म पूरा किया ।उत्तर प्रदेश में सरकारी विद्यालयों में प्राय: मुख्य अतिथि के रूप में मंत्री और बड़े अधिकारी को सम्मिलित कर लिया जाता है ,और बिना मौसम एवं समय की परवाह किये बच्चों से काम लिया जाता है ।आज के कार्यक्रम का सबसे खूबसूरत पहलू यही था कि कार्यक्रम की मुख्य अतिथि लोक सेवी डाक्टर जूड को बनाया गया ,और विद्यालय प्रबंधन को इस कार्य के लिए मूल्यवान धन्यवाद प्राप्त होना चाहिए ।इस विद्यालय की दूसरी महत्वपूर्ण बात प्रधानाचार्य के रूप में एक मुस्लिम महिला का चयन है ,और शहर के सांप्रदायिक मिजाज़ के बावजूद विद्यालय से उनका जुड़ना और प्रबंधन के द्वारा उनको महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपा जाना आश्वस्त करता है ।
हम लोग लगभग समय से ही कार्यक्रम में पहुंच गए थे ,परंतु सारे सीट पहले से ही भरे हुए थे और हमने कस्बोचित चालाकी दिखाते हुए शहर के मुख्य नाले के उपर ही अपनी कुर्सी रख दी ,ठंडा ज्यादा था ,अत: नाले के नीचे के 'सकल पदारथ' ने ज्यादा डिस्टर्ब नहीं किया ,और सीट के लिए मशक्कत करने की बात दिमाग में ही नहीं आई ।शायद आमंत्रित लोगों की संख्या का अनुमान नहीं लगाया गया था ,परंतु हम लोग नन्हे जानों की कलाकारी देखने के लिए इतना सहने को तैयार थे ।
पहला या दूसरा गीत 'शुभम स्वागतम'था ,और बच्चों के लय एवं वादकों के ताल में पूरी खींचतान चलती रही ,जब लय एवं ताल एक होने लगे तब तक यह गीत समाप्त ही हो गया । विशाल भारद्वाज के गाने ' सबसे बड़े लड़ैया 'पर बच्चों ने अच्छा परफार्म किया ,परंतु एक बच्चे के तलवार से पीछे का परदा गिर गया ।'जिंगल बेल ' के मंचन के समय एक छोटे से बच्चे का पाजामा खुल गया ,और एक अनचाही हंसी फैल गई । सबसे बुरी बात यह हुई कि भोजपुरी के इस ह्रदय जनपद में कोई भी प्रस्तुति भोजपुरी में नहीं थी ।कार्यक्रम के दौरान कभी कभार कॉफी और पानी बॉटने वाला भी दिखा ,पर शायद यह लंठों के लिए था ।
कार्यक्रम पूरी तरह से वयस्कों के लिए बन गया था ,क्योंकि लगभग सारे बच्चे कलाकार बन गए थे ,और परिजन कलाकारों के मुखौटे ,भड़कीले परिधान ,नकली दाढि़यों के पीछे अपने प्रिय को खोज रहे थे ,किसी को मंच पर कोई दिखा ,किसी को नहीं ।ज्यादा बच्च्ेा अपना स्टेप भूल गए थे ।चकबन्दी अधिकारी सुधीर राय की बेटी ईसा(वर्तिका) सामने बैठे अपनी मॉं को ही देखे जा रही थी ,मेरे मित्र अरविंद सिंह के बच्चे शुभ(उम्र 6 साल)ने अपनी डांस पार्टनर को खास हिदायत देते हुए कहा कि यदि वह नृत्य के समय उसका उंगली जोड़ से पकड़ेगी ,तो उसकी ख़ैर नहीं ।मेरा बेटा भी एक बूढ़े के रोल में था ।ऐसा लगता था कि रोल घुसाया गया हो ,क्योंकि दो बूढ़े पहले से ही थे ,तथा एक्ट में मेरे विचार से केवल एक बूढ़े की ही जरूरत थी ।
कार्यक्रम प्रारंभ होने के एक दिन पहले मेरी पत्नी विद्यालय में मौसम के ठ़डा होने और बच्चों के लिए इस कार्यक्रम में कपड़ों के संबंध में बात करने गई ,तो इनको आश्वस्त किया गया कि आपसे ज्यादा हमें बच्चों को लेकर चिंता है 'आप निश्चिंत रहिए ,कमरा हीटर एवं ब्लोअर से गर्म रहेगा '।परंतु कार्यक्रम के बाद जब मेरी पत्नी बच्चों को लेने गई ,तो पॉच डिग्री सेल्सियस तापमान वाले शहर में वह एक गंजी व कुर्ता पहने कमरे में रो रहा था ।यदि उस रोने की ही एक्टिंग मंच पर करायी जाती ,तो मेरा बच्चा ज्यादा सफल होता । न ही वह लंच खाया था ,ना ही बॉक्स अपने पास रखा था ,विद्यालय की शिक्षिका ने बच्चे को ड्रेस पहनाने का प्रयास किया और मेरा बच्चा रोनी सूरत बनाए अपनी मॉ के साथ लौट रहा था ।उसने साबित कर दिया कि उसकी भी प्रतिभा पिता की ही तरह महान और घरेलू ही है ।बाहरीपन उसे सूट नहीं करता ।
भव्य कार्यक्रम के अवश्यंभावी नुक्तों बिंदियों की तरह इसे भूलने का प्रयास कर रहा हूं ,हिंदुस्तान में ए0 आर0 रहमान ऐसे ही पैदा होते हैं ।वैसे रात में कुमार संभवम (उम्र 6 साल)ने बताया कि भावेश से उसकी मिट्ठी हो गई है ।
No comments:
Post a Comment