Sunday, 6 April 2014

हम जहां रहते हैं

भोर में टहलते हुए सड़क पर प्राय: किसी का कफ ,पानका पीक या चबाया गुटखा दिख जाता है ,तब द्विअक्षरी गाली से काम नहीं चलता है और पंचाक्षरी तक जाना पड़ता है ।यही हाल हिंदी साहित्‍य ,पत्रकारिता और विश्‍वविद्यालयों में प्राय:देखने को मिलता है ,कोई किसी का भाई है ,दामाद है ,बेटा है ,चेला है ,और उनका सबसे बड़ा एसाइनमेंट यही है ।अब इन आलियाओं ,कपूरों और धवनों के सामने आपको उखाड़ने के लिए क्‍या बचता है ?

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