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Saturday, 5 September 2015

(हे हिंदी के आलोचक ,नए आलोचक ,आलोचकगण....)


आप आलोचक हैं ,जादूगर नहीं कि किसी को ऊपर उठा सकते हैं किसी को नीचे ,किसी को हवा में गुम कर सकते हैं ,और जो है नहीं उसको साबित कर सकते हैं ,और यदि ऐसा कर सकते हैं तब आप जादूगर ही हैं ,आलोचक नहीं ।
(हे हिंदी के आलोचक ,नए आलोचक ,आलोचकगण....)

Wednesday, 7 January 2015

धर्म की गंंध

मेरे आस-पास धर्म की गंंध होती तो मैं नथूनों में भर-भर के उसे थाहने का प्रयास करता ,उसको असली नाम से बुलाने का प्रयास करता , कुछ बदलने का प्रयास करता ,कुछ उसको भी बदलता ,नहीं बदलता तो खुद को ही बदल लेता ।यदि संभव होता तो घंटे में तीन बार अपना धर्म बदलता या फिर उसकी पथरीले मंसूड़ों को खुरदरे जीभ से सहला-सहलाकर चिकना बना देता ।