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Friday 2 September, 2011

शमीम करहानी ,कवि शायर

चिरैयाकोट मउनाथभंजन के रहने वाले श्री शहाब मोहिउददीन खान (मोबाईल नम्‍बर 09616503548)पेशे से वकील परंतु दिल से कवि(कबीरा) हैं । मउ के ही एक गांव करहां के रहने वाले मशहूर शायर शमीम करहानी के विषय में उन्‍होंने महत्‍वपूर्ण जानकारी दी है ।तथ्‍य के स्‍तर पर यह जानकारी अधूरा होते हुए भी रचनात्‍मकता के स्‍तर पर उल्‍लेखनीय है ।सर्वप्रथम कवि की उस कविता को देखा जाए ,जो उन्‍होंने गांधी जी के हत्‍या के बाद लिखा था
ये घेरे हैं क्‍यों रोने वालों की टोली
खुदारा न बोलो ,ये मनहूस बोली
कोई बाप के खूं से खेलेगा होली
अबस मादरे हिंद शरमा गई है
जगाओ न बापू को नींद आ गई है ।
इस कविता के साथ ही कवि का एक और गजल देखा जाए
मशअल के लिए परदै हुश्‍न ,रूखे मशअल है
कहते हैं जिसे शोला ,वह आग का आंचल है
भीगी हुई पलकें हैं ,ऐ महफिले शब ,सो जा
साकी का तबस्‍सुम भी अब नींद से बोझल है
रूक्‍कासा ऐ दौरां के आहंग पर क्‍या बोले
खुद अपने मसाएल में उलझी हुई पायल है
इक शामे तमन्‍ना को अन्‍दाज को क्‍या कहिए
रूठी हो तो आंसू है ,मन जाए तो काजल है ।
इसी तरह कवि का एक और प्रसिद्ध गजल खान साहब ने ऐसे सुनाया
पीले जो लहू दिल का
वह इश्‍क का मस्‍ती है
क्‍या मस्‍त है ये नागन
खुद अपने को डसती है
ढलते हैं यहां शीशे
चलते हैं यहां पत्‍थर
दीवानों ठहर जाओ
सहरा नहीं बस्‍ती है ।
खान साहब ने कवि शमीम करहांनी का अंतिम गजल इस प्रकार सुनाया
क्‍या शर्म खुदी क्‍या पास हुआ
गुरबत की अन्‍धेरी रातों में
कितने ही बुताने जोहराबदन
बांदीदै नम बिक जाते हैं
ये शहर है ,शहरे जरदारी
क्‍या होगा शमीम अंजाम तेरा
यॉ जेहन खरीदा जाता है
यॉ अहले कलम बिक जाते हैं