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Thursday 3 February, 2011

मम्‍मट के शहर में शक्ति कपूर

किशोर नाभि के एक बीते नीचे के
अनिवार्य भदरोये से ज्‍यादा नही हो मित्र
साहित्‍य,कला,फिल्‍म के मेरे नवोदित साथी
वो उतना ही ताकतवर व खतरनाक है
जितना कि प्रौढ जांघों के बीच की मुद्राएं
जबकि यह साबित हो चुका है
कि शमशेर ज्‍यादा काबिल थे
बेबकूफी मेरी मिलाती है मुझे
धुमिल व राजकमल से
जांघ व जीभ के चालू मुहावरे दिखते हैं मोहक

मुझ असभ्‍य को

जबकि कविता मांगती है तमीज

व मैं उतना ही झुकता चला जा रहा हूं जांघ की तरफ
आचार्य जगन्‍नाथ ने किया ही क्‍या है

अब तो शक्ति कपूर भी बस गए हैं

मम्‍मट के शहर में
व सिखा रहे नवोदिताओं को साधारणीकरण

फिल्‍म,रस व नाडा में अंतर ही कितना है
दिल्‍ली व पटना के उस्‍ताद
जब बोलेंगे कविता के संकट पर
उनका ध्‍यान क्‍या नही जाएगा उन थीसिस पर
जो उनके चौथेपन में भी बना
पुरूषार्थ का साधन
आखिर मैं कहना क्‍या चाहता हूं
शिलाजीत की शक्ति अमोघ है
व कविता छनभंगुर है
कविता का तनाव,गुरूत्‍व ,प्रत्‍यास्‍थता
व सुघटयता भौतिकी का विषय नही























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