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Thursday 5 January, 2012

नामवर और काशीनाथ :हिंदी के अबुलफजल और फैजी



साहित्यिक प्रतिभा भले ही व्‍यक्तिगत हो ,संस्‍कार बहुत कुछ सामाजिक ही होता है ।इसीलिए साहित्‍य की दुनिया में कई योग्‍य भाई हैं ।रीतिकाल में रत्‍नाकर त्रिपाठी के चार बेटों में से तीन चिंतामणि ,भूषण ,मतिराम तो उच्‍च कोटि के कवि थे ही ,द्विवेदी युग में मिश्रबंधु की प्रतिभा भी असंदिग्‍ध ही है ।आप तो यही न कहेंगे कि इनमें कोई विद्यापति ,तुलसी ,सूर या कबीर नहीं है ,परंतु अकबर कालीन फारसी कवि अबुल फ़जल और फ़ैजी को आप क्‍या कहेंगे ।ये दोनों भाई जितने बड़े कवि,इतिहासकार उतने ही बड़े अनुवादक भी थे ।


इस सूदूर अतीत में जाने की भी जरूरत नहीं है ।अपने नामवर और काशीनाथ को ही लीजिए ।दोनों अव्‍वल दर्जे के गद्यकार ।नामवर भले हीं काशीनाथ के पक्ष में खुल के न बोलें ,परंतु मात्र एक किताब 'काशी का अस्‍सी 'ही उनको लंबे समय तक हिंदी साहित्‍य संसार का प्रिय बनाए रखेगा ।वैसे काशीनाथ अपने अग्रज के विषय में इतना मौन नहीं रहते
'अपनी सारी जिन्‍दगी में मैंने ऐसा वक्‍ता नहीं देखा जिसने अपनी जबान से कलम का काम लिया हो ,जो अपनी वाणी से सुनने वालों के लिए दिमाग पर लिखता रहा हो ।एक ही विषय पर कई व्‍याख्‍यान और हर व्‍याख्‍यान में हर बार नये नुक्‍त ,नयी बात ,नयी जानकारियॉ ,जहॉ सभा कानों से नही नहीं ऑखों से भी सुन रही हो ।
पचासों हैं जिनमें कविता कहानी का विवेक नामवर को सुन आया ।
सैकड़ों हैं जिन्‍होंने कोई किताब इसीलिए खरीदी कि उसका जिक्र नामवर के व्‍याख्‍यान में आया था ।
हजारों हैं जिनकी साहित्‍य में दिलचस्‍पी नामवर को सुन कर हुई है ।
और ऐसी संख्‍या तो लाखों में हैं जिन्‍हें नामवर को सुनकर हिन्‍दी स्‍वादिष्‍ट लगी है ।
इसी को नामवर आलोचना की 'वाचिका परंपरा' कहते हैं ,और जब कहते है तो विद्वानों के चेहरे पर कभी व्‍यंग्‍य होता है ,कभी खिल्‍ली उड़ाने का भाव ।
यह सब सुनते रहते थे नामवर ,फिर भी नहीं लिखते '(साभार तद्भव )
काशीनाथ के इस संस्‍मरण में यदि आपको कविताई नजर नहीं आए ,तो भाई हम आपके लिए क्‍या करें
वैसे नामवर सिंह के एक और अनुज(असहोदर)डॉ0 रेवती रमण ने अपनी पुस्‍तक 'हिंदी आलोचना:बीसवीं शताब्‍दी'में नामवर पर लिखते हुए अबुलफज़ल के प्रसंग का याद दिलाया है ।अबुल फज़ल ने फैजी पर लिखते हुए कहा ' उसके बारे में कुछ भी बखान करने में मेरा भ्रातृत्‍व प्रेम बाधक है ।फिर भी ,मैं केवल इतना ही कहकार अपनी लेखनी को विराम देता हूं कि जो शब्‍द से शब्‍द को जोड़ता है ,गोया जिस्‍म से खून का एक कतरा कम करता है ।'

9 comments:

  1. वाह... बहुत सटीक टिप्‍पणी रवि जी... आभार और शुभकामनाएं...

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  2. लेकिन अल्लामा को याद कीजिये : 'हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा...''---हिंदी और हिंदोस्तां में कितने भाई और कितने बेटे-बेटियां होंगे, क्या बाकी सब नालायक हैं? फ़ैज़ी की बात ठीक लगती है :' जो भाई को भाई से जोड़ता है, गोया जिस्म से खून का एक कतरा कम करता है।'

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  3. रोचक टीप है. सहोदर प्रकरण में, और नामवरजी की वक्तृत्व कला के महत्त्व के संदर्भ में भी. सहोदर अनुज ने जो कहा है, वह अतिशयोक्ति-भरी अभिव्यक्ति न मानी जाए. नामवरजी के आकस्मिक श्रोता भी इससे सहमत होंगे.

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  4. नामवर का नाम सुन कर कई लोग परेशान होने लगते हैं। यह बाते उनके लिए जरूरी हैं।

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  5. yah koi nai baat nahin hai....dusaon ki baat ko agar aap quote karte hain to unka naam dena kripya na bhulen.

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  6. yah koi nai baat nahin hai....dusaron ki baat ko agar aap quote karte hain to unka naam dena kripya na bhulen.

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  7. bahut sundar aur sach kaha hai.ghar ke mutavik aadarniya sh namvar singh ji janm din 28 july ko parta hai.narayani sahitya academy ke sanshthapak aur sarakchhak hoone ne naate es baar academy ne unka jank din 30 july ko bhavya roop se azad bhawan delhi main manaya. par aane ke liye kaise manaya aadarniya babuji ko.par man gaye

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  8. waise is tippani ke liye dhanyaad.

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  9. नामवर सिंह और काशीनाथ सिंह का वृहत्तर परिवार साहित्य से जुड़ा है... परिवार की परंपरा में साहित्य एक दिलचस्प और शिक्षाप्रद टिप्पणी हो सकती है..

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