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Saturday 4 December, 2010

मोहम्‍मद रफी और वह तबालची

मोहम्‍मद रफी जब गाते थे
उनकी ऑखें मुद जाती थी
लय के अनुसार ही
गिरता उठता था
उनका हाथ
उनके गजल को सुन
समुद्र के ह्रदय मे बुलबुले उठते थे
भजन से भू‍ल जाता था
आग भी गरमाहट
एक पागल सारंगी वाला
यह देख जोर जोर से हंसता है
वेसूरी ध्‍वनि निकाल वह
रफी को अचित करना चाहता है ।
वैसे तबला वादक
आ जाता है नेपथ्‍‍य में
जब रफी गाना शुरू करते है
वह तो तभी दिखता है
जब कोई पंक्ति समाप्‍त हो
या फिर कोई शुरू हो।
वह ढल गया है
रफी के गीत में
गीत से अलग दिखने की चाह नही उसमें ।
वह तो स्‍पष्‍ट कहता है
रफी‍ मॉ सरस्‍वती के पुत्र थे
बिना सरस्‍वती के आशीर्वाद के
कोई ऐसा गा ही नही सकता ।
उसका यह भी मानना है।
कि भगवान शंकर स्‍वयं
रफी को ताल की शिक्षा देते है।
भगवान शंकर कभी कभी
स्‍टूडियो में भी आते
जब करते हों रियाज अकेले में रफी
सारंगी वाले के पास कई जिन्‍न हैं
एक को भेजा था रफी के पास
जिस दिन वो गाने वाले थे
मन तडपत हरि दर्शन को आज
सारंगी वाला जोर देकर कहता है
कि यह मजहब विरोधी है
परन्‍तु गाना सुनते ही जिन्‍न को मुक्ति मिल गई
ऐसा कुछ लोग बताते हैं
सारंगी वाला चाहता है कि
रफी उन्‍हीं का गीत गाए
धुन भी उन्‍हीं का हो
रफी साहब ने देखा था वह गीत
वह कोई पुरानी मजहबी कहानी थी
जिसे कई छोटे बडे गायक दुहरा चुके थे
इस गीत में कोई नयापन नहीं था
वैसे सारंगीवाले का स्‍पष्‍ट मानना है
कि इस गीत में गजब की शक्ति है
सारंगी वाले का मानना है कि
रफी को जन्‍नत नहीं मिलेगी
क्‍योंकि उन्‍होंने बुतों के सम्‍मान में गाना गाया है
रहीम की आत्‍मा अब भी भटक रही है
कुछ ऐसा ही जूर्म उनका भी था
मौलवियों ने कर दिया था फोन
जन्‍नत के बाबूओं को
और लग गया था जन्‍नत में ताला
तबालची बहुत उदास है
वह इसे अफवाह मानता है
बनाता है अदभुत ताल
मूंदता है आंख
व सलाम करता है रफी को ।

1 comment:

  1. रफी साहब की बात ही निराली थी.. please remove word verification..

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