
प्रसिद्ध कथाकार बलवंत सिंह ने फिराक से एक लंबी बातचित की थी ,यह उर्दू चैनल पर प्रसारित हुई थी ।प्रेम कुमार ने कथादेश के दिसम्बर 2011 अंक में इसे सविस्तार छापा है ।बातचित के अंत में बलवंत सिंह का प्रश्न था 'आजादी मिलने के बाद हम तहज़ीबी तरक़्की के कुछ मनाजि़ल तय कर सकते हैं या नहीं ?'।फिराक ने इस प्रश्न का अत्यंत ही सारगर्भित उत्तर दिया:
हुसूले आजादी हमको एक ऐसे आदमी की रहबरी से नसीब हुई जो कई लिहाज से बहुत बड़ा आदमी था ,और कई लिहाज से बहुत छोटा आदमी था ,यानी महात्मा गांधी .....उस शख़्स का शउर और उसका पूरा वजूद इस काबिल थे ही नहीं कि फन्ने -तामीर, फन्ने -मुसव्वरी ,फन्ने -रक्स ,फ़न्ने -मौसिकी ,फन्ने -अदब -उलूम और बुलंद तालीम व तर्बियताफ़्ता दिमाग के मफ़हूम को कुछ भी समझ सके ।महात्मा गांधी की अज़मत एक अलमिया थी ,जिसने हिन्दुस्तान को आजाद भी किया और मुस्तकि़ल तौर पर उन अज़मतों की कद्रशनाशी(मूल्यबोध)से हमें महरूम कर दिया जिनका जिक्र उपर आया है ।मार्क्स और लेनिन ऐसे सूरमाओं और दिलदादगाने अमल (कार्य के लिए समर्पित) के मुताल्लिक़ ऐसी ख़बरें हम तक पहुंची है कि सदहा(सैकड़ों) अदीबों और फ़नकारों के कारनाओं पर ये झूमे थे ।लेकिन हाय !हाय !एक थे महात्मा गांधी जो कई अल्फ़ाज जि़न्दगी में बोले लेकिन एंजेला ,शकुतला,खुसरो ,तानसेन ,जे0सी0बोस और आफ़ाकी तहज़ीब के दीगर पाईंदा और कारनामों के लिए अठहत्तर बरस की लम्बी चौड़ी जि़न्दगी में पांच सात लफ्ज भी नहीं बोल सके ।बल्कि सर जे0सी0बोस की शान में उन्होंने ये गुस्ताख़ी की कि एक पब्लिक जलसे में कह दिया कि दरियाफ्तों से अवाम को क्या फायदा ।वाह रे अवाम वाह रे फायदा ।बूझें तो लाल बूझक्कड़ और न बूझे को ये ।उस शख़्स की रूह महज अंग्रेजी हुकूमत से नहीं लड़ती ,बल्कि इल्म ओ अदब से भी लड़ती थी और तहज़ीब की बुलंद कदरों को समझने से बिल्कुल माज़र(असमर्थ)थी ।महात्मा गांधी उम्र भर अगर कभी मौजूपर कोई मजमून लिखना चाहते कि हिन्दुस्तान का रौशनतरीन दिमाग किन किन सलाहियतों का हासिल हो तो वह मज़मून निहायत सड़ा होता ।उस शख़्स ने सक़ाफ़ती और तहज़ीबी लिहाज़ से हमें भिखमंगा बना दिया ।यह सब आमतौर पर कह चुकने के बाद हम भी कहेंगे कि महात्मा गांधी की जय !!
जाहिल होते हुए भी यह शख़्स हमें बहुत कुछ दे गया है । जि़न्दगी की बहुत सी क़दरें ।जो इल्म ही नहीं ,बल्कि फ़नून ए लतीफा से भी बेनियाज़ है ।अदमे तशद्दुद(अहिंसा का पाठ) का सबक, जुरअत औ हिम्मत का सबक़, माद्दी (भौतिक)ताकत के आगे सर न झुकाने का सबक्,निहत्थों को आगे मुसल्लह कूवतों से लड़ने का सबक़, जिंदगी में एक शानदार तेवर पैदा करने का सबक़,दुनिया की सबसे चालाक और तजुर्बाकार क़ौम के तमाम हथकंडों को बेकार कर देने का सबक़ ,जो हमें महात्मा गांधी ने दिया वो हमें कोई नहीं दे सकता ।महात्मा गांधी और उनके असरात हमारी गुलामी के लिए कार आमद थे ,लेकिन हमारी आजादी के लिए गांधीयता या तो बिल्कुल बेकार चीज़ है या बहुत कम कार आमद है ।जंगे आज़ादी में हम विदेशी हुकूमत को मिटा देना ही अपना सब कुछ समझ बैठे थे ।आजादी हासिल होने के बाद हम क्या करें ,इस सवाल का जवाब देना महात्मा गांधी के बस का काम नहीं था ।इसीलिए यह ख़तरनाक और कार आमद आदमी ,ये बड़े काम का और निकम्मा आदमी हमेशा स्वराज के लिए लड़ता रहा और स्वराज के लावज़मात बताने से हमेशा दामन भी कतराता रहा ।एक बार ये हज़रत यानी महात्मा गांधी मैसूर सेंट्रल कॉलेज इलाहाबाद में तशरीफ लाए ।उन दिनों मैं पंडित अमरनाथ झा ,कपिल देव मालवीय और प्रकाश नारायण सप्रू सब मैसूर कॉलेज के तालिबे अल्म थे ।प्रकाश नारायण ने महात्मा गांधी से सवाल किया ।कम सेकम कितनी रकम या माली हैसियत रखने की इजाज़त आप किसी को देंग ?जिसका जवाब महात्मा गांधी ने ये दिया कि कुछ नहीं ऐसे ही मौके के लिए शेख़सादी ने लिखा था ' बरीं अक़्लो दानिश वबायद गिरीस्त ' (इस अक़्ल और बुद्धि पर रोना चाहिए )
(साभार बलवंत सिंह ,प्रेम कुमार ,उर्दू चैनल तथा 'कथादेश')