काशी में विद्वता और कुटिल दबंगई का अद्भुत मेल दिखलाई पड़ता है ।कुटिलता
,कूटनीति ,ओछापन ,स्वार्थ आदि का समावेश विद्वता में हो जाता है । काशी
में प्रतिभा के साथ परदुखकातरता ,स्वाभिमान और अनंत तेजस्विता का भी मेल
है जो कबीर ,तुलसी ,प्रसाद और भारतेंदु ,प्रेमचंद आदि में दिखलाई पड़ता है ।
काशी में प्राय: उत्तर भारत ,विशेषत: हिंदी क्षेत्र के सभी तीर्थ स्थलों
पर परान्नभोजी ,पाखंडी पंडों की भी संस्कृति है ,जो विदग्ध ,चालू
,बुद्धिमान और अवसरवादी कुटिलता की मूर्ति होते हैं । काशी के वातावरण में
इस पंडा संस्कृति का भी प्रकट प्रभाव है । वह किसी जाति-सम्प्रदाय
,मुहल्ला तक सीमित नहीं है ।वह ब्रह्म की तरह सर्वत्र व्याप्त है ।पता
नहीं कब किसमें झलक मारने लगे ।
(विश्वनाथ त्रिपाठी'व्योमकेश दरवेश ' में )
(विश्वनाथ त्रिपाठी'व्योमकेश दरवेश ' में )
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