हाकिम आपकी क्षुद्रता को भगवान दूर करें....आपके जातिगत अहंकार को भगवान शिव पी जाएं ,भगवान शिव आपकी शारीरिक श्रेष्ठता -भाव का भी शमन करें ।वायुदेव आपकी क्षेत्रीय दुर्भावना को उड़ा दें , आपके लोभ पर इंद्रदेव का वज्र गिरे ,आपकी कामुकता गलकर बर्फ हो जाए ।आपके झूठको भगवान गणेश अच्छा शिल्प दें ,माता सरस्वती आपके आडम्बर को विश्वसनीय बनाएं......
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Saturday, 22 November 2014
Wednesday, 19 November 2014
चंद्रकान्त देवताले और आधुनिक कविता की शक्ति
चंद्रकांत देवताले की एक कविता में से -
मैं वेश्याओं की इज्ज़त कर सकता हूं
पर सम्मानितों की वेश्याओं जैसी हरकतें देख
भड़क उठता हूं पिकासो के सांड की तरह
मैं बीस बार विस्थापित हुआ हूं
और जख्मों ,भाषा और उनके गूंगेपन को
अच्छी तरह समझता हूं
उन फीतों को मैं कूड़ेदान में फेंक चुका हूं
जिनसे भद्र लोग जिन्दगी और कविता की नाप-जोख करते हैं
पर सम्मानितों की वेश्याओं जैसी हरकतें देख
भड़क उठता हूं पिकासो के सांड की तरह
मैं बीस बार विस्थापित हुआ हूं
और जख्मों ,भाषा और उनके गूंगेपन को
अच्छी तरह समझता हूं
उन फीतों को मैं कूड़ेदान में फेंक चुका हूं
जिनसे भद्र लोग जिन्दगी और कविता की नाप-जोख करते हैं
चन्द्रकांत देवताले की यह कविता आधुनिकतावाद के सुसभ्य केंचुलों को फाड़ते हुए आधुनिक कविता के नए उपकरणों को स्थापित करती है ।यहां छंदमुक्त कविता अपने सर्वाधिक शक्तिशाली रूप में मौजूद है ।
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