चंद्रकांत देवताले की एक कविता में से -
मैं वेश्याओं की इज्ज़त कर सकता हूं
पर सम्मानितों की वेश्याओं जैसी हरकतें देख
भड़क उठता हूं पिकासो के सांड की तरह
मैं बीस बार विस्थापित हुआ हूं
और जख्मों ,भाषा और उनके गूंगेपन को
अच्छी तरह समझता हूं
उन फीतों को मैं कूड़ेदान में फेंक चुका हूं
जिनसे भद्र लोग जिन्दगी और कविता की नाप-जोख करते हैं
पर सम्मानितों की वेश्याओं जैसी हरकतें देख
भड़क उठता हूं पिकासो के सांड की तरह
मैं बीस बार विस्थापित हुआ हूं
और जख्मों ,भाषा और उनके गूंगेपन को
अच्छी तरह समझता हूं
उन फीतों को मैं कूड़ेदान में फेंक चुका हूं
जिनसे भद्र लोग जिन्दगी और कविता की नाप-जोख करते हैं
चन्द्रकांत देवताले की यह कविता आधुनिकतावाद के सुसभ्य केंचुलों को फाड़ते हुए आधुनिक कविता के नए उपकरणों को स्थापित करती है ।यहां छंदमुक्त कविता अपने सर्वाधिक शक्तिशाली रूप में मौजूद है ।
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