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Sunday, 16 January 2011

उंगलियों का गुण धर्म

फेसबुक की दुनिया में कोई माईबाप नही है   

यहां दोस्‍त हैं या नहीं हैं   
या फिर दोस्‍तों के दोस्‍त हैं   

हमारे कई दोस्‍त हमें महिला समझ  

या फिर कवि,पत्रकार,बुदिधमान समझ बहुत स्‍नेह देते हैं  

जो भी हो,यह स्‍नेह मुझे बहुत प्रिय है   

फेसबुक के मेरे अग्रजगण साहित्‍य,कला,पत्रकारिता,व्‍यवसाय के मंजे खिलाडी हैं    
इनको पता है कब किसको क्‍या कहना है   
कब किससे कुछ कहना है सटना है   

यहां उंगलियों से पसन्‍द किए जाते हैं   
 उंगली से ही निबाही जाती है        

उंगलियों से ही दिल ,देश पर नजर रखते हैं  
खता इन्‍हीं की है,क्‍यों सर कलाम होगा  
ज्‍यादा से ज्‍यादा उंगली तमाम होगा    

बदल गया है उंगलियों का गुणधर्म  
देश अब माल हो गया है   
देश उंगलीमाल हो गया है   






Wednesday, 5 January 2011

द बर्थ

अर्धनारीश्‍वर संपादक के गल चुके 

गर्भाशय से ही ब्‍लाग जन्‍मा

  लाश के पेट के उपर प्रतीकों का गटठर  छाती की तरह उठा था
 हाथ की उंगलियों से कम था बारहमासा
 फुसफुसाता मुंह उसका अस्‍तव्‍यस्‍त भाषा की तरह अस्‍पष्‍ट था
 नथूने में उसके कमसिन कवयित्रियों के याद का गंध था
 जिसकी कविताएं प्रतिमाह छप रही थी
झिलमिलाते आंख के सामने था
लौटाई गई कविताओं के टटके बिम्‍ब
ऐसी ही कहानियों के दर्द 
संपादक के कान में गर्म तेल की तरह घुस रहे थे
 प्रकाशन और पुरस्‍कार की शताधिक अंर्तकथाएं
  डॉक्‍यूमेंटरी फिल्‍म की तरह सादी और उबाउ लग रही थी
  संपादक आज देह त्‍याग रहा था
  उसके पोर पोर से नया कुछ उग रहा था









Monday, 3 January 2011

सुनो विनायक सेन सुनो

नववर्ष व शनिवार का दिन
मैं भी पहुंचा दूमहली हनुमान जी के पास
वैसे तो मेरे गांव में कई हनुमान जी हैं
एक पोखरी के पास
एक पीपल के नीचे
बभनटोली के पास एक
व चमरटोली के पास एक था
कई मूर्तियां और आ गई है
जगह भी छेक ली गई है
परन्‍तु दूमहले हनुमान की कीर्ति ही कुछ और है
इसके पहले महल पर लूले,लंगडे,भीखमंगे थे लाईन लगाए
वे हनुमान जी से ज्‍यादा लडडू को खोज रहे थे
दूसरे महल पर ज्‍यादा शांति थी
यहां चारा,हवाला,कफन,संचार जैसे अनिवार्य सेवा से जुडे घोटालेवाज भक्ति में मगन थे
हनुमान जी के मुंह पर पर्दा था
कोई पुजारी ही यह हटा सकता था
अचानक हवा से हो गए हनुमान बेपरदा
उनके नथूने क्रोध से फूले हुए थे
किसी महान कष्‍ट से मुंह बन्‍द था उनका
विशाल गदा से झुक रहा था उनका कंधा
हनुमान को देखकर भी घोटालेबाज जमे रहे
कुछ नहीं बिगडने का दम्‍भ उसके चेहरे पर था
हनुमान जी चाहकर भी कुछ नहीं कर रहे थे

शायद वे डरे थे अपने पुजारी से 

या उस ठेकेदार से जो व्‍यवस्‍था करता है उनके भोग का
अब बताओ विनायक सेन
तुम्‍हारे रिहाई का अर्जी किसे दूं
जल्‍द ही जबावी चिटठी भेजो
हां चिटठी में सूरज तारे की बात मत करना

सरकार को पता है कि सूरज में एटम बम होता है
व बम से सब कुछ हिल जाता है 

शेष सब ठीक है