'प्रश्न ये नही है कि होरी कैसे मरा ,प्रश्न ये है कि होरी कैसे जीया '
विजय देव नारायण साही
गोदान की आलोचना से खिन्न होके कभी साही जी ने ये लिखा था ,और बात सही भी है ।कथादेश का किसान विशेषांक आया है(मई 2012) ,और कविताओं को देखकर तो यही लगता है कि किसानी जीवन कम आत्महत्याओं का मुद्दा ज्यादा महत्व पा रहा है ।कविताएं अच्छी हैं ,परंतु ढर्रा एक ही ।एक ही रंग दिख रहा है ।प्रश्न ये है कि किसानी जीवन के वे अंश साहित्य का अंग क्यों नहीं बन रहे हैं ,जिसे किसान पचास- साठ साल तक जीता है ।
विजय देव नारायण साही
गोदान की आलोचना से खिन्न होके कभी साही जी ने ये लिखा था ,और बात सही भी है ।कथादेश का किसान विशेषांक आया है(मई 2012) ,और कविताओं को देखकर तो यही लगता है कि किसानी जीवन कम आत्महत्याओं का मुद्दा ज्यादा महत्व पा रहा है ।कविताएं अच्छी हैं ,परंतु ढर्रा एक ही ।एक ही रंग दिख रहा है ।प्रश्न ये है कि किसानी जीवन के वे अंश साहित्य का अंग क्यों नहीं बन रहे हैं ,जिसे किसान पचास- साठ साल तक जीता है ।