कुमार विश्वास क्या आप मैथिली शरण गुप्त के बाद के किसी कवि को जानते हैं ,यदि हां तो आपने उनसे क्या सीखा ,और नहीं तो जान लीजिए गुप्त युग के बाद छायावाद ,प्रगतिवाद ,प्रयोगवाद ,नई कविता ,समकालीन कविता के रास्ते हिंदी कविता नई सदी में प्रविष्ट हुई है ।इस लंबे रास्ते में हिंदी कविता ने बहुत सारे गहनों को छोड़ा है , ढ़ेर सारा नयापन आया है ।आजहिंदी कविता निराला ,नागार्जुन ,अज्ञेय ,शमशेर ,मुक्तिबोध ,धुमिल के प्रयोग को स्वीकार करती है ।आप गुप्त युग के ही किसी अदने कवि के सौवें फोटोस्टेट की तरह आवारा बादल बरसा रहे हैं ,पर यदि वो वारिश ही सही है ,तो फिर अज्ञेय का क्या होगा :
अगर मैं तुमको ललाती सांझ के नभ की अकेली तारिका
या शरद के भोर की नीहार न्हाई कुंई
टटकी कली चम्पे की
वगैरह अब नहीं कहता ।
तो नहीं कारण कि मेरा ह्रदय
उथला या कि सूना है ।
देवता अब इन प्रतीकों के कर गए हैं कूंच
कभी वासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है ।
परंतु आप उन भगोड़े देवताओं को कहते हैं 'इहा गच्छ इहा तिष्ठ ' ।कहे हुए बातों को दुहराने तिहराने से कविता नहीं बनती ,ये आपसे कौन कहे ,क्योंकि आपको हरेक सुझाव दाता आपको ईर्ष्यालु नजर आता होगा ,जो आपके स्टाईल ,आपकी लोकप्रियता ,मिलने वाली धनराशि से जलता होगा ।मैंने आपका दर्शन तो नहीं किया कभी ,परंतु एक मित्र ने मुझे फोन करके कहा कि आप हिंदी के सबसे बड़े कवि हैं मतलब सबसे मंहगे कवि ,आपके एक रात का खर्चा चार-पांच लाख है ,और आप महीनों महीनों पहले से ही 'बुक' रहते हैं ।अब गुरू आपने तो साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ की ऐसी तैसी कर दी ।ससुर साहित्यकार लोग आजन्म लिखकर भी ज्ञानपीठ नहीं पाते ,जिसकी पुरस्कार राशि पांच लाख है ,और आप तो अमिताभ बच्चन की तरह आते हैं ,और दो घंटे में ही पांच लाख ले लेते हैं ,वैसे धनराशि मजेदार और ईर्ष्योत्पादक जरूर है ,परंतु मिहनत जरा कविता पर भी कर लीजिए ।एक और अदने कवि शमशेर की कुछ पंक्तियां आपको भेज रहा हूं :
हिन्दी का कोई भी नया कवि अधिक-से अधिक ऊपर उठने का महत्वाकांक्षी होगा तो उसे और सबों से अधिक तीन विषयों में अपना विकास एक साथ करना होगा
1 उसे आज की कम-से-कम अपने देश की सारी सामाजिक,राजनैतिक और दार्शनिक गतिविधियों को समझना होगा ,अर्थात वह जीवन के आधुनिक विकास का अध्येता होगा ।साथ ही विज्ञान में गहरी और जीवंत रूचि होगी ।
हो सकता है इसका असर ये हो कि वो कविताएं कम लिखे मगर जो भी लिखेगा व्यर्थ न होगा ।
2 संस्कृत ,उर्दू ,फ़ारसी ,अरबी ,बंगला ,अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाऍं और उनके साहित्य से गहरा परिचय उसके लिए अनिवार्य है ।(हो सकता है कि उसका असर ये हो कि बहुत वर्षों तक वह केवल अनुवाद करे और कविताऍं बहुत कम लिखे जो नकल-सी होंगी ,व्यर्थ सिवाय मश्क के लिखने को या कविताऍं लिखना वो बेकार समझ) इस दिशा में अगर वह गद्य भी कुछ लिखेगा तो वह भी मूल्यवान हो सकता है ।
3 तुलसी ,सूर ,कबीर ,जायसी ,मतिराम ,देव ,रत्नाकर और विद्यापति के साथ ही नज़ीर ,दाग़ ,इक़बाल ,जौ़क और फ़ैज के चुने हुए कलाम और उर्दू के क्लासिकी गद्य को अपने साहित्यगत और भाषागत संस्कारों में पूरी-पूरी तरह बसा लेना इसके लिए आवश्यक होगा ।
अब फिर से एक पाठक की घटिया दलील ।दलील ये कि पांच लाख प्रति घंटा देने वाला चूतिया नहीं है न ,टोपियां ,गमछा ,आंगी उछालने वाले हजारों युवा बेवकुफ़ नहीं है न ।अब गुरू ये सोचो कि राजू श्रीवास्तव तुमसे कम तो नहीं लेता है ,तुमसे ज्यादा ही लोकप्रिय है ,और उसके हूनर में भी कविता की गंध है ,तो क्यों न उसके कॉमेडी को भी कविता ही कहा जाए ।
और इस अदने पाठक की दूसरी और अंतिम दलील (दलील नहीं अनुरोध)कि लिखने के लिए पढ़ना भी जरूरी ही है ।हरेक आंदोलन को ठोस बुनियाद चाहिए ,कविता को भी ।और कविता का गोत्र तो निश्चित ही अलग होना चाहिए ।आपकी कविता आपकी ही कविता दिखनी चाहिए ,और आपकी सब कविता अपनी ही कविता से अलग भी ।कमाने और उड़ाने का तर्क अलग है ,अच्छी कविता का अलग ।
अगर मैं तुमको ललाती सांझ के नभ की अकेली तारिका
या शरद के भोर की नीहार न्हाई कुंई
टटकी कली चम्पे की
वगैरह अब नहीं कहता ।
तो नहीं कारण कि मेरा ह्रदय
उथला या कि सूना है ।
देवता अब इन प्रतीकों के कर गए हैं कूंच
कभी वासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है ।
परंतु आप उन भगोड़े देवताओं को कहते हैं 'इहा गच्छ इहा तिष्ठ ' ।कहे हुए बातों को दुहराने तिहराने से कविता नहीं बनती ,ये आपसे कौन कहे ,क्योंकि आपको हरेक सुझाव दाता आपको ईर्ष्यालु नजर आता होगा ,जो आपके स्टाईल ,आपकी लोकप्रियता ,मिलने वाली धनराशि से जलता होगा ।मैंने आपका दर्शन तो नहीं किया कभी ,परंतु एक मित्र ने मुझे फोन करके कहा कि आप हिंदी के सबसे बड़े कवि हैं मतलब सबसे मंहगे कवि ,आपके एक रात का खर्चा चार-पांच लाख है ,और आप महीनों महीनों पहले से ही 'बुक' रहते हैं ।अब गुरू आपने तो साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ की ऐसी तैसी कर दी ।ससुर साहित्यकार लोग आजन्म लिखकर भी ज्ञानपीठ नहीं पाते ,जिसकी पुरस्कार राशि पांच लाख है ,और आप तो अमिताभ बच्चन की तरह आते हैं ,और दो घंटे में ही पांच लाख ले लेते हैं ,वैसे धनराशि मजेदार और ईर्ष्योत्पादक जरूर है ,परंतु मिहनत जरा कविता पर भी कर लीजिए ।एक और अदने कवि शमशेर की कुछ पंक्तियां आपको भेज रहा हूं :
हिन्दी का कोई भी नया कवि अधिक-से अधिक ऊपर उठने का महत्वाकांक्षी होगा तो उसे और सबों से अधिक तीन विषयों में अपना विकास एक साथ करना होगा
1 उसे आज की कम-से-कम अपने देश की सारी सामाजिक,राजनैतिक और दार्शनिक गतिविधियों को समझना होगा ,अर्थात वह जीवन के आधुनिक विकास का अध्येता होगा ।साथ ही विज्ञान में गहरी और जीवंत रूचि होगी ।
हो सकता है इसका असर ये हो कि वो कविताएं कम लिखे मगर जो भी लिखेगा व्यर्थ न होगा ।
2 संस्कृत ,उर्दू ,फ़ारसी ,अरबी ,बंगला ,अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाऍं और उनके साहित्य से गहरा परिचय उसके लिए अनिवार्य है ।(हो सकता है कि उसका असर ये हो कि बहुत वर्षों तक वह केवल अनुवाद करे और कविताऍं बहुत कम लिखे जो नकल-सी होंगी ,व्यर्थ सिवाय मश्क के लिखने को या कविताऍं लिखना वो बेकार समझ) इस दिशा में अगर वह गद्य भी कुछ लिखेगा तो वह भी मूल्यवान हो सकता है ।
3 तुलसी ,सूर ,कबीर ,जायसी ,मतिराम ,देव ,रत्नाकर और विद्यापति के साथ ही नज़ीर ,दाग़ ,इक़बाल ,जौ़क और फ़ैज के चुने हुए कलाम और उर्दू के क्लासिकी गद्य को अपने साहित्यगत और भाषागत संस्कारों में पूरी-पूरी तरह बसा लेना इसके लिए आवश्यक होगा ।
अब फिर से एक पाठक की घटिया दलील ।दलील ये कि पांच लाख प्रति घंटा देने वाला चूतिया नहीं है न ,टोपियां ,गमछा ,आंगी उछालने वाले हजारों युवा बेवकुफ़ नहीं है न ।अब गुरू ये सोचो कि राजू श्रीवास्तव तुमसे कम तो नहीं लेता है ,तुमसे ज्यादा ही लोकप्रिय है ,और उसके हूनर में भी कविता की गंध है ,तो क्यों न उसके कॉमेडी को भी कविता ही कहा जाए ।
और इस अदने पाठक की दूसरी और अंतिम दलील (दलील नहीं अनुरोध)कि लिखने के लिए पढ़ना भी जरूरी ही है ।हरेक आंदोलन को ठोस बुनियाद चाहिए ,कविता को भी ।और कविता का गोत्र तो निश्चित ही अलग होना चाहिए ।आपकी कविता आपकी ही कविता दिखनी चाहिए ,और आपकी सब कविता अपनी ही कविता से अलग भी ।कमाने और उड़ाने का तर्क अलग है ,अच्छी कविता का अलग ।