शुक्लोत्तर आलोचक---आचार्य नन्द
दुलारे वाजपेयी
छायावादी आलोचक वाजपेयी जी के लिए छायावादी ,स्वच्छंदतावादी ,सौष्ठववादी ,रसवादी ,अध्यात्मवादी संज्ञा और विशेषण का प्रयोग किया गया है ।वे किसी एक धारा में रूकते नहीं ,यह जहां तक उनकी विशेषता है ,वहीं सीमा भी ,क्योंकि विभिन्न धाराओं में भ्रमण करते हुए वे बहुत सारा असंगत तथ्यों एवं विचारों को एकत्र कर लेते हैं ।नन्द किशोर नवल ने उनकी आलोचना में ‘विरोध’ के स्थान पर ‘समन्वय’ और ‘विवादी’ स्वरों के स्थान पर ‘संवादी’ स्वरों का उल्लेख किया है ।उनमें भौतिकवाद के साथ भाववाद और अध्यात्मवाद के साथ मार्क्सवाद का समन्वय दिखता है ।नवल जी उनको समन्वयवादी आलोचक मानते हैं ।बच्चन सिंह ने उनकी आलोचनात्मक मान में भावात्मक निष्पत्ति और रूपात्मक सौंदर्य को शामिल किया है ।इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं –‘आधुनिक साहित्य ‘ ,’नया साहित्य:नए प्रश्न’ ,’जयशंकर प्रसाद’ ,’कवि निराला’ ,’हिंदी साहित्य :बीसवीं शताब्दी’ ,’राष्ट्रीय साहित्य तथा अन्य निबन्ध’ ,’प्रकीर्णिका’ ।
योगदान-
छायावादी आलोचक वाजपेयी जी के लिए छायावादी ,स्वच्छंदतावादी ,सौष्ठववादी ,रसवादी ,अध्यात्मवादी संज्ञा और विशेषण का प्रयोग किया गया है ।वे किसी एक धारा में रूकते नहीं ,यह जहां तक उनकी विशेषता है ,वहीं सीमा भी ,क्योंकि विभिन्न धाराओं में भ्रमण करते हुए वे बहुत सारा असंगत तथ्यों एवं विचारों को एकत्र कर लेते हैं ।नन्द किशोर नवल ने उनकी आलोचना में ‘विरोध’ के स्थान पर ‘समन्वय’ और ‘विवादी’ स्वरों के स्थान पर ‘संवादी’ स्वरों का उल्लेख किया है ।उनमें भौतिकवाद के साथ भाववाद और अध्यात्मवाद के साथ मार्क्सवाद का समन्वय दिखता है ।नवल जी उनको समन्वयवादी आलोचक मानते हैं ।बच्चन सिंह ने उनकी आलोचनात्मक मान में भावात्मक निष्पत्ति और रूपात्मक सौंदर्य को शामिल किया है ।इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं –‘आधुनिक साहित्य ‘ ,’नया साहित्य:नए प्रश्न’ ,’जयशंकर प्रसाद’ ,’कवि निराला’ ,’हिंदी साहित्य :बीसवीं शताब्दी’ ,’राष्ट्रीय साहित्य तथा अन्य निबन्ध’ ,’प्रकीर्णिका’ ।
योगदान-
1 भक्ति कवियों और छायावादी कवियों के
मूल्यांकन में आचार्य शुक्ल की सीमा का जोरदार उद्घाटन ।
2 छायावादी नूतन कल्पना छवि ,भाव और भाषा-रूपों पर पहली बार सकारात्मक दृष्टि
।छायावाद का अपना जीवन-दर्शन ,अपनी
भाव-सम्पत्ति ।यह द्विवेदीकालीन परिपाटीबद्धता ,नीतिमत्ता और स्थूलता के
विरूद्ध नवोन्मेष है ।इसमें अनुभूति ,दर्शन और शैली का अद्भूत सामंजस्य है ।यह
राष्ट्रीय चेतना के स्वरों से परिपूर्ण है ।
3 निराला की आलोचना करते हुए बुद्धि तत्व
और अभिधात्मक काव्य-शैली को आधार बनाया ।
4 जैनेन्द्र के सीमित दृष्टिकोण ,वैविध्यहीनता
,काल्पनिकता और ह्रासोन्मुखी मूल्यों पर प्रहार । ‘शेखर एक जीवनी’ की मार्मिकता को स्वीकारा ,परंतु सामाजिक दृष्टि से इसे
निम्नतर रचना बताया ।अश्क के उपन्यास संसार को सजीव ,परंतु प्राणियों को
निर्जीव कहा ।
5 छायावाद पूर्व खड़ी बोली काव्य का दाय
और कविता में आधुनिक युग के प्रवर्तन का श्रेय मैथिली शरण गुप्त को दिया ।रत्नकार
की कविता को युग का अनिवार्य काव्य नहीं माना ।‘साकेत’ में सूक्ष्म कवित्व को स्वीकारा ।‘साकेत’ को आरंभिक कृति तथा ‘कामायनी’ को ‘प्रतिनिधि काव्यग्रंथ’ कहा ।
6 प्रसाद के नाटकों की ऐतिहासिकता ,काव्यात्मकता का उद्घाटन ।‘चन्द्रगुप्त’ की तुलना में ‘स्कन्दगुप्त’ की संरचनात्मक अन्विति एवं रंगमंचीयता पर बल ।
दृष्टि-
6 प्रसाद के नाटकों की ऐतिहासिकता ,काव्यात्मकता का उद्घाटन ।‘चन्द्रगुप्त’ की तुलना में ‘स्कन्दगुप्त’ की संरचनात्मक अन्विति एवं रंगमंचीयता पर बल ।
दृष्टि-
1 काव्य में मूलत: सौन्दर्यानुसन्धान
,इसे जीवन-चेतना से जोड़ा ।
2कथा साहित्य और नाटक में जीवन –चेतना और सामाजिक प्रभाव तथा उनके परिदृश्य का आकलन ।प्रसाद को स्वच्छंदतावादी
और लक्ष्मी नारायण मिश्र को पुनरूत्थानवादी कहा ।
3 ‘रसवाद’ को स्वीकार करते हुए भी इसे बहुत उपयोगी नहीं माना ,क्योंकि यह निम्न कोटि
के कवियों को संरक्षण देता है ।
4 प्रारंभ में मानते हैं कि साहित्यकार को समाज की चिंता करने की जरूरत नहीं ,’शिव’ शब्द को व्यर्थ माना ,जहां सत्य और सुंदर होगा ,वहां शिव होगा ही ।
4 प्रारंभ में मानते हैं कि साहित्यकार को समाज की चिंता करने की जरूरत नहीं ,’शिव’ शब्द को व्यर्थ माना ,जहां सत्य और सुंदर होगा ,वहां शिव होगा ही ।
5 प्रगीत और प्रबंध की तुलना करते हुए ‘प्रगीत’ को ऐसा शिल्प माना ,जिसमें कवि की भावना की पूर्ण अभिव्यक्ति
संभव है ।
6 शुद्ध कविता की खोज करना चाहा ,तथा
आलोचना में सिद्धांतविहीनता का पक्ष लिया ।
7 आलोचना में सात प्रतिमानों को वरीयता क्रम दिया ,जिसमें कवि की अंर्तवृत्ति को सर्वोपरि माना ,तथा अंत में कवि के सामाजिक संदेश को रखा ।
सीमा-
7 आलोचना में सात प्रतिमानों को वरीयता क्रम दिया ,जिसमें कवि की अंर्तवृत्ति को सर्वोपरि माना ,तथा अंत में कवि के सामाजिक संदेश को रखा ।
सीमा-
1 विभिन्न मतवादों ,विचारों ,आग्रहों का
समन्वय करना चाहा ।
सैद्धांतिक दृढ़ता का अभाव ।
2प्रेमचन्द के पात्र वर्गगत ,जातिगत हैं
,व्यक्तिगत नहीं ,यह माना । वे भावात्मक एवं समसामयिक कहानी लिखते हैं । ‘गोदान’ को राष्ट्रीय एवं महाकाव्यात्मक मानने का विरोध किया ।
(रवि भूषण पाठक)
(रवि भूषण पाठक)
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