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Tuesday, 27 December 2011
उदयनाचार्य मिथिला पुस्तकालय और सूरज प्रकाश
फेसबुक से बाहर इनको मैं कम जानता हँ ,तथा इनके लिए तो मैं लगभग अज्ञात ही हूं ।घर में लंबे समय से एकत्र पुस्तकों को दान दिए जाने संबंधी लेख पढ़कर मैंने इनसे संपर्क किया ,और इनके माध्यम से मेरे गांव के पुस्तकालय 'उदयनाचार्य मिथिला पुस्तकालय'के लिए दो सौ से ज्यादा पुस्तकें आ रही है ।ये हैं सूरज प्रकाश जी ,फेसबुक प्रोफाईल के हिसाब से देहरादून के हैं ,तथा पुणे में रहते हैं ,इन्होंने करियन गांव का तो नाम भी नहीं सुना है ,हो सकता है समस्तीपुर का सुना हो ।वैसे करियन समस्तीपुर के उन पुराने गांवों में है ,जिनका संदर्भ इतिहास ,पुराण और दर्शन में है ।'नव्यन्याय' के प्रतिष्ठापक आचार्य उदयनाचार्य का गांव ।'न्याय कुसुमांजलि' ,'किरणावलि'प्रभृत कई युगांतरकारी दर्शन की पुस्तकों के लेखक । संस्कृत विद्यालय के उधार के भवन में चल रहा पुस्तकालय ।कुछ लोगों के लिए पुस्तकालय ,कुछ के लिए अजायबघर ।दो तीन साल की सीमित सफलता ।वैसे कुछ लोगों के प्रयास के बावजूद राजनीति का अड्डा नहीं बना है ।कुछ लोगों को पुस्तकालय की स्थापना में राजनीतिक एवं सामाजिक निहितार्थ दिखते हैं ।कुछ लोग ये भी मानते हैं कि सारे बच्चे तो गांव के बाहर ही पढ़ते हैं ।अत: गांव में पुस्तकालय की कोई जरूरत नहीं है ।इन बातों के बावजूद यह छोटा सा पुस्तकालय मौजूद है ,तथा गांव के लोग जिस गति से पुस्तकालय पर हँसते है ,पुस्तकालय उससे तीव्र गति से गांव पर हँसता है ।
इस पुस्तकालय की जिंदगी में एक अच्छी खबर है ।सूरज प्रकाश जी दो सौ से ज्यादा पुस्तक भेज रहे हैं ।उन्होंने जब अपनी च्वाईश पूछी थी ,तो मैंने संक्षेप में अपनी जरूरत बता दी
आदरनीय सूरज प्रकाश जी
नमस्कार
आपकी सदाशयता ने हमें इतना
ढ़ीठ बना दिया कि हम मॉंगे भी और चुनाव भी करें ।मैंने अपने गांव के
पुस्तकालय के लिए किताबों की बात की थी ।यह गांव उत्तरी भारत के उस
क्षेत्र में है ,जहॉ हिन्दी और मैथिली बोली जाती है ,तथा शिक्षा का
माध्यम पहले संस्कृत था ,अब हिंदी हो गया है ।यहॉ मैं केवल हिंदी
साहित्य के किताबों की चर्चा कर रहा हूं ।मेरे पुस्तकालय में प्रेमचंद
की किताबें हैं ।प्रेमचंद के समकालीनों में प्रसाद का उपन्यास कंकाल और
तितली नहीं है ।उग्र की किताबें नहीं है ।निराला का भी उपन्यास कुल्ली
भाट नहीं है ।प्रेमचंद के बाद यशपाल का केवल झूठासच और दिव्या है ,अत:
उनकी शेष किताबें उपयोगी रहेगी ।राहुल सांस्कृत्यायन का दिवा स्वप्न
,रांगेय राघव का उपन्यास भैरव प्रसाद गुप्त का गंगा मैया ,राजेन्द्र
यादव का सारा आकाश पुस्तकालय में नहीं है ।अज्ञेय का शेखर एक जीवनी फट
चुका है ।नागार्जुन का बलचनमा एवं वरूण के बेटे है । रेणु का मैला आंचल
है ।अत: इन दोनों का शेष किताब भी उपयोगी रहेगा ।हजारी प्रसाद द्विवेदी
का मात्र एक उपन्यास 'वाणभट्ट की आत्मकथा' एवं कबीर पर आलोचना है
।द्विवेदी जी के अन्य उपन्यास मेरे पास नहीं है ।नागर जी एवं भगवती चरण
वर्मा का भी कोई उपन्यास पुस्तकालय में नहीं है ।कमलेश्वर का 'कितने
पाकिस्तान' भी पुस्तकालय में नहीं है ।
नाटक ,कहानी संग्रह ,कविता संग्रह भी हमारे पुस्तकालय के लिए उपयोगी
रहेगा ।इसके अलावा यूरोप का अनूदित साहित्य ,संस्कृत साहित्य भी हो तो
अति उत्तम ।
इतिहास की
किताबों में विपिन चन्द्र , राम शरण शर्मा ,रजनी पाम दत्त ,सत्या राय
,सतीश चन्द्र की किताबों के अतिरिक्त अन्य किताबें भी उपयोगी रहेगी ।
आपका
रवि भूषण पाठक
09208490261
रवि भूषण पाठक
द्वारा अजय सिंह एडवोकेट
258/एफ ,बुनाई विद्यालय के पीछे
मउनाथ भंजन ,जनपद मउनाथभंजन(उत्तर प्रदेश)
पिन 275101
सूरज प्रकाश जी की सदाशयता से हम सब चकित हैं ।शायद ज्ञान पहले की तुलना में कुछ ज्यादा ही प्रकाश के गुणों को धारण कर रही है ।विसरण ,परावर्तन ,विवर्तण ,प्रकीर्णन जैसे तमाम गुण ज्ञान में पहली बार दिखा है ।किताब मिलते ही मैं गांव के लिए रवाना हो जाउंगा ।लाल कपड़े में सजे किताबों के लिए कुछ लोग गांव में प्रतीक्षा कर रहे होंगे ।उदयनाचार्य के गांव में पंडित और चमार एक ही टाट पर बैठ साहित्य का आनंद लेंगे ।इस दृश्य को शायद आप नहीं देखेंगे ,पर किताबों की यह यात्रा वाकई मजेदार है ।वातानुकूलित कक्ष से गंवई मचान की यात्रा ,परंतु सूरज प्रकाश जी ,मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि आपके किताबों को यहॉं भी अच्छे मित्र मिलेंगे ।
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आदरनीय सूरज प्रकाश जी thank u 4 me side..
ReplyDeleteApne mere gaw k pustkaly k liye apne pustk de rhe h.. Hum sb k traf s .. Many many thnx u....
@chacha ji.. Apne k chlte he gaw m pustkaly aich...apno k gaw k man rkwa le etai krat che..hmra sb k apne pr garv aich..
Prnam...
Amar...
रवि भाई
ReplyDeleteअभिभूत हूं। दो तीन बातें, मैं पुणे में नहीं, मुंबई में हूं। रोजी रोटी के लिए रिजर्व बैंक में काम करता हूं। नौकरी से मार्च 2012 में रिटायर हो जाऊंगा लेकिन लेखन से नहीं। आपके गांव के बारे में तो नहीं, शहर के बारे में जानता हूं। किताबें दो सौ नहीं, तीन सौ आ रही हैं। कल रवना हो गयीं। मैं www.surajprakash.com पर उपलब्ध हूं। किताबों को मैंने बेटियों की तरह विदा किया है।