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Saturday 17 March, 2012

गुरूदेव अब शांति निकेतन में नहीं रहेंगे


शांतिनिकेतन के प्रशासक अब चहार दीवारी को किला बनाने पर तुले हैं

परिंदा भी पर न मारे का ठसक लिए हुए

गुरूदेव ठेकेदारी में दलाली से परेशान नहीं दिखे

यद्यपि उन्‍होंने यह तो नहीं कहा कि सब चलता है

ऐसा भी नहीं लगा कि वो लिखना पढ़ना बोलना भूल गए हैं

गुरूदेव ने कहा यही तो दिक्‍कत है यार

मेरे कंठ को ,आंख को ,कान को भीलकवे ने नहीं मारा है

और मुझे सब कुछ दिख सुन रहा है

वी0सी0 रजिस्‍ट्रार मास्‍टर से उन्‍हें कोई शिकायत नहीं

सब फूल माला पहनाते ही थे

पर चाहते थे कि रवींद्र नाथ बुत बने रहे

अपने किताबों के साथ आलमारी में बंद रहें

इन मास्‍टरों की श्रद्धा भी गुरूदेव को लुभाती है

पर इनकी लिस्‍ट देख लजा जाते हैं

हर कोई पचीस पचास लाख कमाकर

दिल्‍ली लंदन में बच्‍चों को पढ़ाकर

एक दो किताब लिखकर अमर हो जाना चाहता था ।

ऐसा भी नहीं कि उन्‍हें कोई शिकायत ही नहीं

अब हर कोई अपने जिला जवार

देश प्रदेश का मानचित्र अपने कमीज के नीचे छिपाए हुए है

शांति निकेतन में सैकड़ो बंगाल ,बिहार ,उत्‍तर प्रदेश

प्रशासकों ,शिक्षकों ,छात्रों की ये देशीयताये

कौन सा आंचलिक आंदोलन है प्रिय

ये ध्रुवों परिधियों के लिए प्रेम समेटे उत्‍तर आधुनिकता तो नहीं

उस दिन गुरूदेव रह गए अवाक्

सूर्यदेव के अस्‍ताचल होने सेलाभान्वित प्रेमी युगल को

छुपकर देख रहे दो शिक्षकबतिया रहे

'इस स्‍साली को यही मिला है क्‍या '

और दोनों शिक्षक युवती के संग अपने

भोग की कुटिल कल्‍पना से हँसते रहे हो - हो -हो

फिर युवती ,उसकी जाति ,माता-पिताके लिए खर्च करते रहे अपनी सारी योग्‍यता ।

रवींद्र नाथ ने निश्‍चय कर लिया है

वे चले जायेंगे शरतचंद्र के गांव

या फिर परमहंस के गांव

इससे पहले कि कोई व्‍योमकेश दरवेश

शांति निकेतन के द्वार पर धकियाया जाए

व मांगा जाए उससे सर्टिफिकेट

वे छोड़ देंगे शांति निकेतन

फिलहाल बंगाल में ही कहीं रहेंगे ।

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