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Saturday 17 March, 2012

अनिल त्रिपाठी की कविता :खटारा जीप की टंकी




मैं जो कहना चाहता था.....

वे सब समझ रहे थे

वे जानते थे मेरा कष्‍ट

मैं ज्‍यादे क्‍या कहूं .....

सर ,खुद ही समझदार हैं

इतनी अच्‍छी आपसी समझ-बूझ के

बावजूद

मेरा मधुमेह और उच्‍च रक्‍तचाप

बढ़ ही रहा है ।

स्‍वप्‍न में दिखाई देती खटारा जीप

और उसकी विशाल होती टंकी

पसीने से तरबतर हो जाती थी शरीर

जब बताया जाता था मुझे ,

कल माननीय फलॉ

अतिथिगृह में पधार रहे हैं

इस व्‍यवस्‍था में रससिक्‍त विज्ञ जन

उपदेश देते

इतना एडजस्‍ट करना ही पड़ता है

फिर

असंख्‍य उदाहरण ,एडजस्‍ट करने के

मन ही मन अपने अबोध बच्‍चों

की निर्मल आकांक्षाओं को दबाते हुए

अपने को तैयार करने लगता हूं


अगले एडजस्‍टमेंट के लिए

............

(अनिल कुमार त्रिपाठी)

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