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Sunday, 16 December 2012

अब तो पिताओं के भी मरने के दिन आ गए हैं ।

उम्र चालीस
चर्बियों के हिसाब से किसी नौकरी में
 मोटरसाईकिल की डिक्‍की में बी0पी0 शुगर की रिपोर्ट
रंगरूप और सफाचट ललाट से तेल-क्रीम की विफलता स्‍पष्‍ट थी
कई और चूर्ण ,अर्क भी फेल हुए थे
बच्‍चों की मार्कशीट :इस बार भी ससुरा थर्ड ही आया
जेब में मॉल का पता :कब तक झूठमूठ का व्‍यस्‍त रहोगे
हैंडिल में लटका सब्जियों का झोला:फिर अदरख भूले हो ससुर
फोन पर बार-बार नजर: फिर कौन सी मीटिंग है
गांव में मां भी बीमार है
अब तो पिताओं के भी मरने के दिन आ गए हैं ।

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