कबीर संजय की कहानी 'मकड़ी के जाले' नया ज्ञानोदय के फरवरी अंक में प्रकाशित हुई है ।कहानी नई कहानी के बहुप्रचारित 'नएपन' से आगे आकर प्रारंभ होती है ।पहली कक्षा में पढ़ रहा अंची के हवाले से लेखक गांव के दुआरा ,बरामदा,कमरा ,नीम से जुड़े भूगोल का मुआयना करता है ,तथा बहुत ही बारीकी से अंची के दिमाग में प्रवेश करता है ।चींटे के जैविक चक्र,आवास को बालमनोविज्ञान के चश्मे से कहानी में शामिल करते हुए लेखक अभिव्यक्ति के नए स्वर्ग की ओर प्रस्थान करता है ।करौंदे का पेड़ ,घोंसला ,मकड़ी का जाला केवल अंची के लिए ही नया बन के नहीं आता है ,एक पाठक को भी ऐसे सहज सामान्य चीजों को देखने का नया एंगल मिलता है ।अंची के सर में तेल लगाने ,उसे नहाने एवं टिफिन तैयार करने के विवरण में इतनी सहजता है ,और एक-एक चरण पर इतना गहन ध्यान कि कहानियों में रूपक और प्रतीक की बात बेमानी लगने लगती है ।अंची का एक बड़ा भाई भी है जो अपने पिता को एक औरत के साथ सोए देखकर घर से भाग गया है ,इस सोने वाले प्रसंग को कबीर विस्तार नहीं देते हैं ,विमल चंद्र पांडेय की एक कहानी जो 'अनहद' में प्रकाशित हुई है ,लगभग ऐसे ही प्रसंग में बेडरूम के चित्कारों से भरी है ।कबीर का संयम बहुत ही कलात्मक है ।इस कहानी में नन्दू लौटता है ,और पिता उसके भागने के कारणों से अनजान पिटाई करते हैं ।नंदू क्रोध और प्रतिशोध से अपना ओठ भींचता है ।अंची भी ओंठ को भींचते हुए चींटी ,ललमुनिया और कौवा के प्राकृतिक आवास पर आक्रमण करता है ।नाराज कौवे अंची पर आक्रमण करते हैं तथा उसके हाथ से पेड़ की डाली छूट जाती है ।कबीर संजय की इस कहानी के द्वारा हम ग्रामीण बाल मनोविज्ञान की एक अछूती दुनिया से परिचित होते हैं ।निरंतर क्रूर हो रही दुनिया और परिवार के पास अंची और नंदू के लिए कुछ भी नही है ।परिवार और विद्यालय यहां पर क्रोध ,हिंसा और प्रतिशोध सिखाने के साधन मात्र हैं ।अंची जो मकड़ी के जाले को जिज्ञासा से देखता है , और उसमें फँसता ही चला जाता है ............
(रवि भूषण पाठक)
(रवि भूषण पाठक)
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