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Friday, 23 March 2012
देश ,इतिहास और रामदेव
विश्व इतिहास में बहुत सारे बैद्य आए ,नाम ,अर्थ ,यश कमाया ,राजाओं की चिड़ौड़ी की ,राजबैद्य कहलाए ,चले गए ।यहां तक कि हेप्पोक्रेट्स ,चरक और सुश्रूत राजदरबार में रहकर भी इतना प्रभावी नहीं हुए कि उनकी हनक चिकित्सा से भिन्न क्षेत्र में भी दिखाई दे ।अरस्तू की विद्वता ,प्रतिभा ,विषय और क्षेत्र की सीमाओं को भेदने वाली दृष्टि अन्य को नहीं मिली ।कृष्णदेव राय ,बरनी ,अमीर खुसरो बड़े ही विद्वान मंत्री थे ,परंतु कोई भी इतनी प्रसिद्धि और शक्ति अर्जित नहीं कर सका कि राजनीति का एक अन्य केंद्र बन सके ।यद्यपि इतिहास ऐसे षड्यंत्रों से भरा परा है जिसमें मंत्रियों ने राजा को सत्ताच्युत कर दिया हो ,पर मैं कुछ दूसरी बात कहना चाह रहा हूं बाबा रामदेव जी ।
मैं यह कहना चाह रहा हूं कि चिकित्सा पद्धतियों के प्रणेताओं ,आचार्यों ने भी इतना अर्थ और यश नहीं अर्जित किया होगा कि जितना आपको मिला ,परंतु यह कहना कठिन है कि आपने अपने लिए इस देश के लिए उसका महत्तम उपयोग किया ।आयुर्वेद और योग को लोकप्रिय बनाने के आपके प्रयासों की प्रशंसा हुई है ,परंतु आपने इस वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति को ग्रामीण भारत में फैलाने तथा भारत के ग्रामीण एवं गरीब जनता को सरल एवं सुगम चिकित्सा उपलब्ध कराने का प्रयास किया हो ,ऐसा कहना कठिन है ।शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी डाबर और हिमालया जैसी कंपनी की उपलब्धि आपसे बेहतर है ।गुणवत्ता और मूल्य की दृष्टि से भी उक्त कंपनियां बेहतर रही है ।
राजनीति एवं संस्कृति के प्रति आपकी अभिरूचि सम्मानजनक होते हुए भी दिशाहीन है ।भारतीय राजनीति के किस पहलू की तरफ आपका झुकाव है ,तथा किन तत्वों पर आपको बल देना है ,यह अभी तक आपने सुनिश्चित किया है ।आप कभी संघी राजनीति तथा कभी प्राचीन भारतीयतावाद के घोषित पॉपुलिज्म की और लगाव दिखाते हैं ,परंतु खुलकर स्वीकार नहीं करते ।आपके विचार की यह दिशाहीनता आपकी राजनीति में भी है ,आप यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि आपको वैद्य ,आचार्य बनना है या कौटिल्य जैसा राजनिर्माता ।आप खुलकर संसदीय राजनीति में भी घुस नहीं रहे हैं ।वैचारिक एवं राजनीतिक स्तर पर यह घाल-मेल आपके लिए जितना भी सुविधाजनक है ,देश के लिए थकाने वाला । देश वैसे भी राजनीतिक नौटंकियों से घबड़ा गया है ।यद्यपि देश इन नौटंकियों में समय-समय पर भाग लेता है ,तथापि अभिनय की भूमि मंच ही है , गंगा-सिंधु की विशाल भूमि नहीं ।आपका भगवा विंध्याचल से दक्षिण भी बेअसर रहा है ,तथा अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों में अपने प्रति गलतफहमी पाले रहने का निरंतर मौका दिया है ।यदि आपको राजनीति में रहना है गुरू तो साफ करो कि वे बातें गलतफहमी ही है या सही है ।
आपके अब तक की राजनीति एवं वैद्याचार्यत्व से स्पष्ट है कि आपको प्रो-हिंदू ,प्रो-अर्बन ,घालमेली राजनीति प्रिय है ।आम गरीब जनता को वैचारिक एवं चिकित्सकीय स्तर पर उद्वेलित करने का एक शानदार मौका आपने खो दिया है ।देश ने अभी भी आपको नकारा नहीं है , पर देश नए एवं स्वच्छ परिधान में ही आपको गले लगाएगा ।
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उद्देश्य कितना भी पवित्र हो,यदि दृष्टि साफ नहीं है तो विचार और क्रिया-दोनों की नियति हवा-हवा होकर रह जाना है।इनके पीछे अगर कोई छिपा हुआ एजेंडा हो तो बात और बिगड़ जाती है। असमंजस तो घातक है ही--दुविधा में दोनों गये,माया मिले न राम।
ReplyDeleteआपने स्थिति का सुन्दर विश्लेषण किया है,रवि जी।बधाई !!!