मुम्बई 2008 :कुछ दृश्यांश (श्री रा0 ठा0 के लिए सादर)
1
जिस शहर के बारे में कभी इल्म था उनको
कि जहां हर किसी के लिए गुजर-बसर है
कि जो कोई एक बार आया यहां ,फिर लौट कर वापस नहीं गया कभी
कि जहां जिंदगी का एक नाम बेफिक्री और आजादी है
कि जहां प्रेम करना दुनिया में सबसे निरापद है
कि जहां आधी रात को भी सड़कों पर बेखौफ भटकता है जीवन
कितनी हैरत की बात है
एक रोज उसी शहर से मार भगाया गया उनको
और वह भी एकदम दिनदहाड़े
2
वे कीड़ों-मकोड़ें की तरह सर्वत्र उपस्थ्िात थे
मुंबई से लेकर डिब्रूगढ़ तक ......और दिल्ली से कोलकाता तक
इसके बावजूद वे कीड़ों-मकोड़ों की तरह अनुपयोगी और संक्रामक नहीं थे
सिर्फ दो वक्त की रोटी की गरज में
हजारों मील पीछे छोड़ आए थे वे अपनी जमीन और स्मृतियां
वे माणूस भी नहीं थे ,बस दो अदद हाथ थे
जो हमेशा से ही शहर और जिंदगी के हाशिये पर रहे
लेकिन उनकी ही बदौलत टिका रहा शहर अपनी धुरी पर
और उसमें दौड़ती रही जिंदगी बखूबी
खेतों की मिट्टी में उसके पसीने का नमकीन स्वाद था
कारखाने और इमारतों की नींव में उनके रक्त की गंध
दरअसल वे जन्मे ही थे इस्तेमाल के लिए
और इसीलिए मुंबई से लेकर डिब्रूगढ़ तक
और दिल्ली से कोलकाता तक सर्वत्र उपस्थित रहे
लेकिन अंतत: वे कीड़े-मकोड़ों की तरह ही घृणित और अवांछित माने गए
और मारे भी गए कीड़े-मकोड़ों की ही तरह
3
वे इस दुनिया में नए वक्त के सबसे पुराने खानाबदोश हैं.....
उनके कंधे और माथे पर जो गठरियां और टिन के बक्से हैं
दरअसल वही हैं उनका घर-संसार
लिहाजा चाह कर भी आप उनको बेघर या शहरबदर नहीं कर सकते
आप उनको एक दिन पृथ्वी के कगार से धकेल कर
इतिहास के अंतहीन शून्य में गिरा देने की जिद में है
लेकिन यह फकत आपकी दिमागी खब्त है
इससे पहले कि आप इस कवायद से थक कर जरा सुस्ता सकें,
वे इसी इतिहास की सूक्ष्म जड़ों के सहारे
पृथ्वी के पिछले छोर से अचानक दोबारा प्रकट हो जाएंगे
वे इस दुनिया के नए वक्त के सबसे पुराने खानाबदोश हैं.......
(प्रभात मिलिंद)
मो0 09435725739
(साभार 'शुक्रवार ,साहित्य वार्षिकी 2013)
1
जिस शहर के बारे में कभी इल्म था उनको
कि जहां हर किसी के लिए गुजर-बसर है
कि जो कोई एक बार आया यहां ,फिर लौट कर वापस नहीं गया कभी
कि जहां जिंदगी का एक नाम बेफिक्री और आजादी है
कि जहां प्रेम करना दुनिया में सबसे निरापद है
कि जहां आधी रात को भी सड़कों पर बेखौफ भटकता है जीवन
कितनी हैरत की बात है
एक रोज उसी शहर से मार भगाया गया उनको
और वह भी एकदम दिनदहाड़े
2
वे कीड़ों-मकोड़ें की तरह सर्वत्र उपस्थ्िात थे
मुंबई से लेकर डिब्रूगढ़ तक ......और दिल्ली से कोलकाता तक
इसके बावजूद वे कीड़ों-मकोड़ों की तरह अनुपयोगी और संक्रामक नहीं थे
सिर्फ दो वक्त की रोटी की गरज में
हजारों मील पीछे छोड़ आए थे वे अपनी जमीन और स्मृतियां
वे माणूस भी नहीं थे ,बस दो अदद हाथ थे
जो हमेशा से ही शहर और जिंदगी के हाशिये पर रहे
लेकिन उनकी ही बदौलत टिका रहा शहर अपनी धुरी पर
और उसमें दौड़ती रही जिंदगी बखूबी
खेतों की मिट्टी में उसके पसीने का नमकीन स्वाद था
कारखाने और इमारतों की नींव में उनके रक्त की गंध
दरअसल वे जन्मे ही थे इस्तेमाल के लिए
और इसीलिए मुंबई से लेकर डिब्रूगढ़ तक
और दिल्ली से कोलकाता तक सर्वत्र उपस्थित रहे
लेकिन अंतत: वे कीड़े-मकोड़ों की तरह ही घृणित और अवांछित माने गए
और मारे भी गए कीड़े-मकोड़ों की ही तरह
3
वे इस दुनिया में नए वक्त के सबसे पुराने खानाबदोश हैं.....
उनके कंधे और माथे पर जो गठरियां और टिन के बक्से हैं
दरअसल वही हैं उनका घर-संसार
लिहाजा चाह कर भी आप उनको बेघर या शहरबदर नहीं कर सकते
आप उनको एक दिन पृथ्वी के कगार से धकेल कर
इतिहास के अंतहीन शून्य में गिरा देने की जिद में है
लेकिन यह फकत आपकी दिमागी खब्त है
इससे पहले कि आप इस कवायद से थक कर जरा सुस्ता सकें,
वे इसी इतिहास की सूक्ष्म जड़ों के सहारे
पृथ्वी के पिछले छोर से अचानक दोबारा प्रकट हो जाएंगे
वे इस दुनिया के नए वक्त के सबसे पुराने खानाबदोश हैं.......
(प्रभात मिलिंद)
मो0 09435725739
(साभार 'शुक्रवार ,साहित्य वार्षिकी 2013)
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