ये हैं ट्रांसफर के जायरीन ,बढ़ रहे हैं अपना चूड़ा-सत्तू बांध के ।कोई बस से ,ट्रेन से ,कोई अपने वाहन से ।यात्रा गांव से तहसील की ओर ,तहसीलों से जिला मुख्यालय और जिला मुख्यालय से राजधानी की ओर ।ये पचास साल पहले के गंगास्नानार्थियों से भी गए गूजरे हैं ,कोई गाय का गोबर छू रहा है ,कोई मोगलाही बाबा को मुर्गा चढ़ा रहा है ,कोई पान और माछ से सगुन बना रहा है ,और जोशी जी को तो ज्योतिषी ने कह दिया था कि गिलहरी का गोबर छू के ही यात्रा प्रारंभ करें ,सो वे शहर के जंगल और पार्क में गिलहरी ढ़ूंढ़ रहे हैं ।पहले के दो दिनों में तो सफलता नहीं मिली है ,पर तीसरे दिन पार्क के कर्मचारी गफूर मियां ने खास टिप्स दी है कि गिलहरी बस सुबह और शाम को ही दिशा-मैदान पर निकलते हैं ,सो जोशी जी ने भी टार्गेट पर ध्यान दिया है ,और आज वे अपने इकलौते बेटे और नौकर के साथ ही आऐंगे और मिशन पूरा करके ही लौटेंगे ।सबसे जो महत्वपूर्ण है कि देश की सर्वोत्तम नीतियों में से एक धर्मनिरपेक्षता का पालन पूरी तरह से हो रहा है ।डॉ0 ब्रह्मदेव शुक्ल मोगलानी बाबा को मुर्गा चढ़ा रहे हैं और मो0 साजिद पैदल वैद्यनाथ धाम जाऐंगे ।वाह रे हिंदुस्तान का सेकुलर रिवाज और गंगा-जमुनी तहजीब ।
पूरे प्रदेश में ट्रांसफर खतम होने वाले हैं ,तो हमारे विभाग में अब शुरू होने वाला है ।मतलब औरों के वार्षिक चक्र से अलग है हमारा वार्षिक चक्र ।मानो हमारे बच्चों के लिए हाकिमों ने स्कूल में स्थान सुरक्षित रखबाया है ,मानो हमारी यात्रा बरसात की किच-किच में ही अपने मुकाम पे पहुंचती है ,और हमारी विदाई पे लोग रोते नहीं ,साथी मूंछ पिजाते हैं ,अधीनस्थ आश्वस्त होता है 'स्साला नकचढ़ा गया जिला से 'और अधिकारी ये बतियाते छिपाते नहीं कि 'मैं चाहता तो रोक लेता उसे ' ।जो भी हो दलाल जिला से लेकर राजधानी तक फैल गए हैं ।आपके शहर में तो वे हैं ही ,जो पिछले कई महीनों से आपसे पूछ रहे हैं ,फिर आपकी पत्नी को भी कनविंस करने का प्रयास कर रहे हैं 'भाभी जी कहां ठीक रहेगा ' ,'बच्चों के स्कूल के लिए ये ठीक रहेगा ' ।और पता नहीं स्टेशन से ही दललबा सब पीछे लगा हुआ है ,विधान सभा मार्ग ,सचिवालय के सामने वाले सड़क पर भी कई सफेदपोश ,कृष्णवस्त्र धारक ,पॉकेटमार और सिनेमा टिकट का ब्लैक मार्केटर अपने अपने अंदाज से आपसे पूछता हुआ फिर आपके जेब को और आपको चेक करता हुआ ।
आप किसी गफलत में नहीं रहे ।ये जरूरी नहीं कि सफेद पोश और वह काला कोट धारी ही आपको मंजिल तक ले जाए ,वह पॉकेटमार भी कम धांसू नहीं और कुछ साहेब लोग पॉकेटमारों को ज्यादा पसंद करते हैं ,क्योंकि पॉकेटमार आपसे ज्यादा मोल-तोल करते हुए उनको ज्यादा से ज्यादा दिलबाता है ,और सफेदपोश जल्दी में रहता है ,और उनका हिस्सा भी कम होता है ,वह बात हरदम मुख्यमंत्री और मंत्री का ही करेगा ,और आपके सामने भी किसी का फोन आएगा तो एकदम चौकस होके कहेगा 'बाद में बात करिए अभी तो प्रमुख सचिव से बात चल रही है ' ।मूंछ वाला ,बिना मूंछ वाला ,रीढ़ वाला ,बिना रीढ़ वाला ,दिमाग वाला ,बिना दिमाग वाला भी कोई भी हमारा ट्रांसफर करा सकता है ।सबकी अपनी पहुंच है ,अपना रेट है ।सब कोई आश्वस्त कर रहा है ।अब आपके विवेक पर है ,रहने और जाने के रिस्क को तौलते हुए जल्दी उन्हें बता दीजिए ,और आप भी अपना जेब ,दिल ,जुबान को चेक करते हुए उन्हें बता दीजिए ।वे बड़े महत्वपूर्ण मिशन पर हैं ,उनका समय मत खाईये ,उनका दिमाग मत खाईए ।वे जो बता रहे ,मूक होकर ग्रहण करें।हमारे एक मित्र 'संशयात्मा विनश्यति' कहकर उनका दिमाग और चढ़ाते हैं ।लेकिन जब कोई बाजार में है तो क्यों न ठोक बजाकर ही खरीदे ।अब वे वाराणसी के नाम पर चंदौली और फैजाबाद के नाम पर अयोध्या कर देंगे तो आप कहां कहां मुंह दिखाऐंगे ,किस किस से आपबीती बताऐंगे और बताकर ही क्या कुछ कर लेंगे ।एक रस्ता ये भी है कि चुपचाप जाके बड़े साहेब की गोद में बैठ जाईए और उनके झोले के निकट अपना पर्स रख दीजिए ,फिर वे जितना मन हो निकाल लेंगे ,और आपके मन की जगह पर आपको दे देंगे ।और जब एक ही जगह पर आपही की तरह दो कंपिटेंट लोग हो ,तब साहेब के दाढ़ी को सहलाईए ,उसमें इत्र लगाइए ,उन दाढि़यों पर कोई शेर कहिए।
यदि शेरों से काम नहीं चले तो रोईए,झूठ बोलिए कि पिता की तबियत खराब है ,और जिस अस्पताल में ईलाज करानी है ,वह इसी शहर में है ।यदि रोने से भी काम न चले तो साहेब के घर चले जाईए ,साहेब की ही नहीं उनकी बेगम का भी पैर पकड़ लीजिए ,क्या पता वहीं काम बन जाए ।ध्यान दीजिएगा साहेब के बेगम का पैर पकड़ते वक्त नफासत में कोई कमी न हो ,कोई शेर वेर पढ़ने की गलती मत कीजिएगा ,हां जितना मन होगा रोईएगा ,थोड़ा गाकर ,थोड़ा चिल्लाकर ,कुछ भर्वल भी आल्हा की तरह ।यदि बेगम पसीझ गई तो फिर समझ लीजिए आपका काम सस्ता भी होगा और अच्छा भी ।फिर अगली मीटिंग आप जब आए तो यह कहते हुए कि मेरे क्षेत्र का प्रसिद्ध आईटम है एक-दो साड़ी जरूर लाईए ।वैसे ये कोई अनिवार्य आईटम नहीं है ,जितनी मैडम उतनी पसंद ।सो अपना सारा ध्यान मैडम की पसंद पर एकाग्र करिए ।
अब इधर देखिए सब बुद्धि रंजन की तरह बुद्धिमान तो है नहीं कि जाते हैं राजधानी तो बताते हैं कि जा रहे आजमगढ़ ।सब उनकी तरह धैर्यवान भी नहीं है कि कितना भी हिचकोला लगे डकार तक नहीं निकालेंगे ,हम लोग तो पहली बार बस पर चढ़े यात्री की तरह थे ,जो बस खिसकी और हम लोग लगे आंख-नाक मूनने ।विनय जी आऐंगे और आपकी पेट से सबकुछ निकलबा लेंगे ,वे भी कुछ बोलेंगे ,लेकिन वह आपके काम का नहीं होगा ,वह उनके द्वारा पहले से ही सोचे गए पार्ट और डायलॉग का एक हिस्सा होगा ।और वे वहीं करेंगे जो बोलेंगे नहीं ,आज तक यही हुआ है ।वे बड़़े दिमाग वाले आदमी हैं ,सबको अपने ही ग्रूप का मनबाने का नौटंकी करते हुए ,वे कम ही लोगों के हैं ।वे उन सबके हैं ,जिनका कोई विकल्प उनके पास नहीं है ,परंतु वे आजकल सबसे पूछ रहे हैं कि ट्रांसफर में इस साल कहां जाना चाहते हैं ।
काम कराने की कोई मानक विधि नहीं है ,कोई मानक माध्यम भी नहीं है ,कोई मानक राशि भी नहीं है ,कोई खास देवता एवं कोई स्पेशल मंत्र भी नहीं है ।किसी मंत्री ,विधायक की शरण लीजिए ।वे आपका काम कराऐंगे ,लेकिन चिट्ठी लिखाने की गलती मत कीजिए ।अइसन अइसन दू सौ चिट्ठी ई सचिवालय में डेली आवत हई ।विधायक जी कहेंगे कि 'अपना भाई है ' या फिर 'निकट संबंधी है ' ।अब आपके काम में कुछ वेट है ।अब फिर इतिश्री समझने की गलती मत कराईए ।साहेब से मिलिए तो विधायक की बदतमीजी के लिए गलती मानिए और उनको आश्वस्त करिए कि 'मेरी चिंता को देखते हुए पिता से नहीं रहा गया और ये गलती हो गई ' ।अब क्षमा मांगने की पूरी नौटंकी करते हुए अपना पर्स खोल दीजिए ।इंशाअल्लाह चाहेंगे तो काम जरूर बन जाऐगा
यदि काम यहां भी नहीं बनता है तो फिर इस मूलमंत्र पर आईए कि साहेबबा का चाहत है ? कोई खास गहना,कोई खास शूट ,किसी खास तरह की कोई बात ।थोड़ा दिमाग पे जोर डालिए ई ससुरा चाहत का है ?
कोई औरत कोई मरद कोई आशीर्वाद कोई जन्तर कोई टोना टोटका ।यदि समय मिले तो उसे भालू और हकीम से जरूर फूंकबा दीजिए । कभी-कभी भालू के फूंकने से पतला चीज भी मोटा दिखने लगता है !शायद भालू के दांत और मुंह से इतिहास का अंत हो जाता है ,और हकीम के दांत और मुंह की गंदगी से विश्वास का रास्ता उत्तरआधुनिकता का संकेत करता है ।
अभी तो हाकिम का कमरा भी सजा होगा ,उन्हीं का क्यूं रामविजय बाबू और श्यामविजय बाबू भी मजे में होंगे ।उनके टेबुल पर ढ़ेर सारी फाईलें ,और टेबुल के नीचे लस्सी ,नमकीन के ढ़ेर सारे निशानियां मौजूद होंगे ,जिन्हें चपरासी भी साफ नहीं करता होगा ,ताकि कोई भी आनेवाला शऊर न भूले ।रामविजय ट्रांसफर की सूची में हर अनिच्छुक का नाम दिखाता होगा ,जबकि ट्रांसफर चाहने वालों से भर मुंह बात भी कैसे कर पाएगा ।चाहने वाले के लिए 'कैसे होगा ,बड़ा मुश्किल है ,बड़ी ही टाईट सिचुएशन है ,बड़ा लेट कर दिए 'जैसा लतीफा निकालता होगा ,और नहीं चाहनेवालों के लिए भी ऐसे ही वाक्यों की महा-श्रृंखलाएं
पूरे प्रदेश में ट्रांसफर खतम होने वाले हैं ,तो हमारे विभाग में अब शुरू होने वाला है ।मतलब औरों के वार्षिक चक्र से अलग है हमारा वार्षिक चक्र ।मानो हमारे बच्चों के लिए हाकिमों ने स्कूल में स्थान सुरक्षित रखबाया है ,मानो हमारी यात्रा बरसात की किच-किच में ही अपने मुकाम पे पहुंचती है ,और हमारी विदाई पे लोग रोते नहीं ,साथी मूंछ पिजाते हैं ,अधीनस्थ आश्वस्त होता है 'स्साला नकचढ़ा गया जिला से 'और अधिकारी ये बतियाते छिपाते नहीं कि 'मैं चाहता तो रोक लेता उसे ' ।जो भी हो दलाल जिला से लेकर राजधानी तक फैल गए हैं ।आपके शहर में तो वे हैं ही ,जो पिछले कई महीनों से आपसे पूछ रहे हैं ,फिर आपकी पत्नी को भी कनविंस करने का प्रयास कर रहे हैं 'भाभी जी कहां ठीक रहेगा ' ,'बच्चों के स्कूल के लिए ये ठीक रहेगा ' ।और पता नहीं स्टेशन से ही दललबा सब पीछे लगा हुआ है ,विधान सभा मार्ग ,सचिवालय के सामने वाले सड़क पर भी कई सफेदपोश ,कृष्णवस्त्र धारक ,पॉकेटमार और सिनेमा टिकट का ब्लैक मार्केटर अपने अपने अंदाज से आपसे पूछता हुआ फिर आपके जेब को और आपको चेक करता हुआ ।
आप किसी गफलत में नहीं रहे ।ये जरूरी नहीं कि सफेद पोश और वह काला कोट धारी ही आपको मंजिल तक ले जाए ,वह पॉकेटमार भी कम धांसू नहीं और कुछ साहेब लोग पॉकेटमारों को ज्यादा पसंद करते हैं ,क्योंकि पॉकेटमार आपसे ज्यादा मोल-तोल करते हुए उनको ज्यादा से ज्यादा दिलबाता है ,और सफेदपोश जल्दी में रहता है ,और उनका हिस्सा भी कम होता है ,वह बात हरदम मुख्यमंत्री और मंत्री का ही करेगा ,और आपके सामने भी किसी का फोन आएगा तो एकदम चौकस होके कहेगा 'बाद में बात करिए अभी तो प्रमुख सचिव से बात चल रही है ' ।मूंछ वाला ,बिना मूंछ वाला ,रीढ़ वाला ,बिना रीढ़ वाला ,दिमाग वाला ,बिना दिमाग वाला भी कोई भी हमारा ट्रांसफर करा सकता है ।सबकी अपनी पहुंच है ,अपना रेट है ।सब कोई आश्वस्त कर रहा है ।अब आपके विवेक पर है ,रहने और जाने के रिस्क को तौलते हुए जल्दी उन्हें बता दीजिए ,और आप भी अपना जेब ,दिल ,जुबान को चेक करते हुए उन्हें बता दीजिए ।वे बड़े महत्वपूर्ण मिशन पर हैं ,उनका समय मत खाईये ,उनका दिमाग मत खाईए ।वे जो बता रहे ,मूक होकर ग्रहण करें।हमारे एक मित्र 'संशयात्मा विनश्यति' कहकर उनका दिमाग और चढ़ाते हैं ।लेकिन जब कोई बाजार में है तो क्यों न ठोक बजाकर ही खरीदे ।अब वे वाराणसी के नाम पर चंदौली और फैजाबाद के नाम पर अयोध्या कर देंगे तो आप कहां कहां मुंह दिखाऐंगे ,किस किस से आपबीती बताऐंगे और बताकर ही क्या कुछ कर लेंगे ।एक रस्ता ये भी है कि चुपचाप जाके बड़े साहेब की गोद में बैठ जाईए और उनके झोले के निकट अपना पर्स रख दीजिए ,फिर वे जितना मन हो निकाल लेंगे ,और आपके मन की जगह पर आपको दे देंगे ।और जब एक ही जगह पर आपही की तरह दो कंपिटेंट लोग हो ,तब साहेब के दाढ़ी को सहलाईए ,उसमें इत्र लगाइए ,उन दाढि़यों पर कोई शेर कहिए।
यदि शेरों से काम नहीं चले तो रोईए,झूठ बोलिए कि पिता की तबियत खराब है ,और जिस अस्पताल में ईलाज करानी है ,वह इसी शहर में है ।यदि रोने से भी काम न चले तो साहेब के घर चले जाईए ,साहेब की ही नहीं उनकी बेगम का भी पैर पकड़ लीजिए ,क्या पता वहीं काम बन जाए ।ध्यान दीजिएगा साहेब के बेगम का पैर पकड़ते वक्त नफासत में कोई कमी न हो ,कोई शेर वेर पढ़ने की गलती मत कीजिएगा ,हां जितना मन होगा रोईएगा ,थोड़ा गाकर ,थोड़ा चिल्लाकर ,कुछ भर्वल भी आल्हा की तरह ।यदि बेगम पसीझ गई तो फिर समझ लीजिए आपका काम सस्ता भी होगा और अच्छा भी ।फिर अगली मीटिंग आप जब आए तो यह कहते हुए कि मेरे क्षेत्र का प्रसिद्ध आईटम है एक-दो साड़ी जरूर लाईए ।वैसे ये कोई अनिवार्य आईटम नहीं है ,जितनी मैडम उतनी पसंद ।सो अपना सारा ध्यान मैडम की पसंद पर एकाग्र करिए ।
अब इधर देखिए सब बुद्धि रंजन की तरह बुद्धिमान तो है नहीं कि जाते हैं राजधानी तो बताते हैं कि जा रहे आजमगढ़ ।सब उनकी तरह धैर्यवान भी नहीं है कि कितना भी हिचकोला लगे डकार तक नहीं निकालेंगे ,हम लोग तो पहली बार बस पर चढ़े यात्री की तरह थे ,जो बस खिसकी और हम लोग लगे आंख-नाक मूनने ।विनय जी आऐंगे और आपकी पेट से सबकुछ निकलबा लेंगे ,वे भी कुछ बोलेंगे ,लेकिन वह आपके काम का नहीं होगा ,वह उनके द्वारा पहले से ही सोचे गए पार्ट और डायलॉग का एक हिस्सा होगा ।और वे वहीं करेंगे जो बोलेंगे नहीं ,आज तक यही हुआ है ।वे बड़़े दिमाग वाले आदमी हैं ,सबको अपने ही ग्रूप का मनबाने का नौटंकी करते हुए ,वे कम ही लोगों के हैं ।वे उन सबके हैं ,जिनका कोई विकल्प उनके पास नहीं है ,परंतु वे आजकल सबसे पूछ रहे हैं कि ट्रांसफर में इस साल कहां जाना चाहते हैं ।
काम कराने की कोई मानक विधि नहीं है ,कोई मानक माध्यम भी नहीं है ,कोई मानक राशि भी नहीं है ,कोई खास देवता एवं कोई स्पेशल मंत्र भी नहीं है ।किसी मंत्री ,विधायक की शरण लीजिए ।वे आपका काम कराऐंगे ,लेकिन चिट्ठी लिखाने की गलती मत कीजिए ।अइसन अइसन दू सौ चिट्ठी ई सचिवालय में डेली आवत हई ।विधायक जी कहेंगे कि 'अपना भाई है ' या फिर 'निकट संबंधी है ' ।अब आपके काम में कुछ वेट है ।अब फिर इतिश्री समझने की गलती मत कराईए ।साहेब से मिलिए तो विधायक की बदतमीजी के लिए गलती मानिए और उनको आश्वस्त करिए कि 'मेरी चिंता को देखते हुए पिता से नहीं रहा गया और ये गलती हो गई ' ।अब क्षमा मांगने की पूरी नौटंकी करते हुए अपना पर्स खोल दीजिए ।इंशाअल्लाह चाहेंगे तो काम जरूर बन जाऐगा
यदि काम यहां भी नहीं बनता है तो फिर इस मूलमंत्र पर आईए कि साहेबबा का चाहत है ? कोई खास गहना,कोई खास शूट ,किसी खास तरह की कोई बात ।थोड़ा दिमाग पे जोर डालिए ई ससुरा चाहत का है ?
कोई औरत कोई मरद कोई आशीर्वाद कोई जन्तर कोई टोना टोटका ।यदि समय मिले तो उसे भालू और हकीम से जरूर फूंकबा दीजिए । कभी-कभी भालू के फूंकने से पतला चीज भी मोटा दिखने लगता है !शायद भालू के दांत और मुंह से इतिहास का अंत हो जाता है ,और हकीम के दांत और मुंह की गंदगी से विश्वास का रास्ता उत्तरआधुनिकता का संकेत करता है ।
अभी तो हाकिम का कमरा भी सजा होगा ,उन्हीं का क्यूं रामविजय बाबू और श्यामविजय बाबू भी मजे में होंगे ।उनके टेबुल पर ढ़ेर सारी फाईलें ,और टेबुल के नीचे लस्सी ,नमकीन के ढ़ेर सारे निशानियां मौजूद होंगे ,जिन्हें चपरासी भी साफ नहीं करता होगा ,ताकि कोई भी आनेवाला शऊर न भूले ।रामविजय ट्रांसफर की सूची में हर अनिच्छुक का नाम दिखाता होगा ,जबकि ट्रांसफर चाहने वालों से भर मुंह बात भी कैसे कर पाएगा ।चाहने वाले के लिए 'कैसे होगा ,बड़ा मुश्किल है ,बड़ी ही टाईट सिचुएशन है ,बड़ा लेट कर दिए 'जैसा लतीफा निकालता होगा ,और नहीं चाहनेवालों के लिए भी ऐसे ही वाक्यों की महा-श्रृंखलाएं
No comments:
Post a Comment