साल हजारों पहले
आर्कमिडीज ने हाथ भर की लाठी से
सरकाया था धरती को
तब यूं ही नजर पड गयी उसकी
सिंधु के बहुरंगी घाटों पर
वह किताबों गानों बोलियो मूर्तियों में खोने लगा
उन रंगों पर कई दावे थे
बोलियों में था जनपद का स्नेह
मूर्तियों के साथ इतिहास बोलता था
केवल प्रसिद्धि का गुरूत्व ही नही
धन्यवाद का ज्वार भी था
सिन्धु बांट रही थी
हडप्पा,गालिब फैज को
लोग डूब रहे थे कालिदास के श्लोकों में
बॉट रहे थे घर उनका
महाकवि कभी कश्मीर कभी मालवा मिथिला मे जनम ले रहा
विद्यापति के पास मैथिल बंगाली असमी
खुसरो के पास जनम रही थी हिंदी उर्दू जुडवा बहनें
कमजोर था पैमाना विभाजन का
जातियां स्नेह से सराबोर थी
शक हो तो पूछिए कामिल बुल्के से
वह मानस पर लिखेगा
या फिर काफिर मुहम्मद रफी से
जिसके भजन सबसे मशहूर हैं
वैसे भी ईद के अच्छे गाने तो लता ने ही गाए हैं
अमन का यह राग कई बार गाया गया
कभी शमशेर ने
किसी यतीन्द्र मिश्र ने भी
राग जारी है
कभी द्रुत कभी विलम्बित
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