' आपूर्ति अधिकारी' यद्यपि दो शब्दों से मिलकर बना है ,परंतु इसकी तुलना आप चार या पांच शब्दों वाले पद से नहीं कर सकते ।आप गृहस्थ हों या संन्यासी इस पद को महत्व देना आपकी विवशता है ,क्योंकि आपके जिन्दगी का सारा मिठास ,सारा प्रकाश उसके नियंत्रण में है ।जिसने 'जिला आपूर्ति अधिकारी' के औदात्य को भोग लिया ,उसके समक्ष शेष सब गौण है ।उसे राजत्व नहीं लुभाता ,ब्रह्म और आत्मा के प्रश्न छोटे लगते हैं ,इतिहास के हजारों साल की यात्रा को वह गुड़ से विदेशी चीनी के विकास की तरह देखता है ।उसे पता है कि चंद्रगुप्त मौर्य और अलाउद्दीन खिलजी तक ने उसका महत्व समझा ।इसीलिए पृथक विभाग और ढ़ेरों अधिकारी नियुक्त किए गए ।पर 'सिकंदर ए शानी' का मंसूबा रखने वाले ये सम्राट और सुल्तान भी उसका कुछ नहीं उखाड़ पाए !
वह समदर्शी है ।आपके पास राशन कार्ड है या नहीं है ,आपको राशन मिलता है या नहीं मिलता है ,कम मिलता है ,कोटेदार गाली देकर भगा देता है ,कम तौलता है ,एक महीना की बजाय छह महीना पर देता है ,वह विचलित नहीं होता ।बल्कि आपके इन उतावले प्रश्नों को वह बाल सुलभ जिज्ञासा की तरह देखता है ,फिर वह इतिहास के मँजे हुए विद्वान की तरह मध्यपूर्व संकट पर बोलता है ,और आपका मुंह खुला का खुला रह जाता है ।कभी कभी वह आपके फैमिली डॉक्टर की तरह डायबिटीज पर गहन चर्चा करते हुए आपके चीनी की मांग को 'इंसुलिन' लगा देता है ।
वह नाटककार प्रसाद के निष्कर्षों को अपने जीवन में उतारा हुआ व्यक्ति है ,उसने शैव सिद्धांत के समरसतावाद का मनन कर अंगीकार कर लिया है ,इसीलिए वह छोटी मोटी समस्याओं से विचलित नहीं होता ,बल्कि वह कुछ कुछ छायावादी भी लगता है ।लोगों की समस्या से वह घबड़ाता नहीं है ।उसे पता है कि लोगों को राशन नहीं मिल रहे हैं ,कोटेदार सारा माल शहर से उठाकर वहीं के आटा मिल को बेच देता है ।शहर का गैस विक्रेता सारा सिलींडर ब्लैक कर लेता है ,परंतु वह मुस्कुराकर बात करता है ।वह तो दुख को भी सुख की तरह लेने की बात करता है ।कुल मिलाकर वह प्रसाद और महादेवी की गीतों को तरह दुख को सौंदर्यात्मक गरिमा देने में विश्वास करता है !
वह अत्यंत ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है ।मंदिर के प्रसाद बनने में ,गुरूद्वारा के लंगर में ,ईद के सेवई के लिए मस्जिद की मांग पर तुरत ही सिलींडर उपलब्ध कराता है ।आप समझ गए होंगे कि वह धर्मनिरपेक्ष भी है ,कुल मिलाकर भगवान से लेकर गॉड तक सबको खरीदे हुए है ,यदि कोई गरीब मजार ,ब्रह्मस्थान या अन्य अर्द्धधार्मिक जगह दिख जाए तो वहां भी अपनी उदारता का प्रदर्शन करने से परहेज नहीं करता ।
वह साहित्यिक भी होता है ।छोटा या बड़ा कोई भी कार्यक्रम हो ,बस आला अधिकारी का रूख स्पष्ट हो ।बिना कहे सुने पंडाल से लेकर काजूबादाम तक सब हाजि़र ।आला अधिकारी मंच पर और वह मंच से बाहर कार्यक्रम पर नजर गड़ाए ।दारू ,बीड़ी ,गुटखा ,कॉफी ,कैमरा सब पर उसकी नजर है ।इतना ही नहीं कवि ,कलाकारों को एक छोटी सी थैली भी पकड़ाता है ,और यह भेंट इतना निष्काम कि लिफाफे पर अपना नाम नहीं आला अधिकारी का नाम रहता है !
वह जेनुइन अफसर है ,अत्यंत बौद्धिक ।ज्यादा रोने या हँसने में विश्वास नहीं करता ।हमारे श्याम भैया के कहे अनुसार बड़े हाकिमों के घर न रोते न हँसते पहुंचता है ।वह मुंह 'बओने' पहुंचता है ।यदि साहब हँसते हैं तो वह हँसता है और साहब उदास होते हैं तो वह उदास हो जाता है ।नकल करने में वह डार्विन के इस सिद्धांत को साबित करता है कि बंदर और मनुष्य का कुछ आनुवांशिक संबंध है !
उसकी विरक्ति का मत पूछिए ।वह छोटे शहर ,कस्बों में रहते हुए पत्नी और बच्चों को लखनउ ,दिल्ली में शिफ्ट करने के लिए लात ,गाली खाता है ।उसका बेटा दारू ,अफीम खाते हुए भी बाप का नाम रौशन करने के लिए संघर्ष करता है ।बाप जिले में गाली खाकर कोटेदारों को जूता मार ,सहयोगियों को फूसलाकर बेटे के लिए कैपिटेशन फी का जुगाड़ करता है ।फेल होने पर वह बेटे के लिए प्रिंसिपल के यहॉं गिफ्ट पहुंचाता है ,यदि बेटा बलात्कार का आरोपी हो तो ये प्रयास बहुगुणित ही नहीं 'मल्टीबैगी'भी हो जाता है ।अफसोस अनुपस्थित होने पर जिला समझता है कि वह शिमला में ऐश कर रहा है ,पर वह अपनी पत्नी को लेकर देश के सबसे बड़े अस्पताल का चक्कर काटता रहता है !
वह विद्वान आदमी है ।गरीबी ,भ्रष्टाचार ,असमानता पर उसके मौलिक विचार हैं ,कभी कभी दुहरायी गयी भी नये चमक के साथ ।जिले के ठसाठस भरे पंडाल में रेडियोचित आवाज में अपनी आंखे कड़ी कर ,विशाल बाहुओं को उुपर कर आसमान की ओर उंगली उठाए जब कहता है कि आखिर घूस का पैसा देश में ही रहता है न !,तो लोग भूल जाते हैं कि किसी पूर्वप्रधानमंत्री का भी यही विचार था ।जब वह आंखें मूंदकर ,हाथ् नीचे कर बताता है कि कौन नहीं चाहता कि असमानता हटे ,तो पंडाल निरूत्तर हो जाता है ,और अगले दिन कई बेकारों को दस बीस हजार में कोटेदारी का लाइसेंस बांट बेरोजगारी को कुछ कम करके ही सांस लेता है !
वह समदर्शी है ।आपके पास राशन कार्ड है या नहीं है ,आपको राशन मिलता है या नहीं मिलता है ,कम मिलता है ,कोटेदार गाली देकर भगा देता है ,कम तौलता है ,एक महीना की बजाय छह महीना पर देता है ,वह विचलित नहीं होता ।बल्कि आपके इन उतावले प्रश्नों को वह बाल सुलभ जिज्ञासा की तरह देखता है ,फिर वह इतिहास के मँजे हुए विद्वान की तरह मध्यपूर्व संकट पर बोलता है ,और आपका मुंह खुला का खुला रह जाता है ।कभी कभी वह आपके फैमिली डॉक्टर की तरह डायबिटीज पर गहन चर्चा करते हुए आपके चीनी की मांग को 'इंसुलिन' लगा देता है ।
वह नाटककार प्रसाद के निष्कर्षों को अपने जीवन में उतारा हुआ व्यक्ति है ,उसने शैव सिद्धांत के समरसतावाद का मनन कर अंगीकार कर लिया है ,इसीलिए वह छोटी मोटी समस्याओं से विचलित नहीं होता ,बल्कि वह कुछ कुछ छायावादी भी लगता है ।लोगों की समस्या से वह घबड़ाता नहीं है ।उसे पता है कि लोगों को राशन नहीं मिल रहे हैं ,कोटेदार सारा माल शहर से उठाकर वहीं के आटा मिल को बेच देता है ।शहर का गैस विक्रेता सारा सिलींडर ब्लैक कर लेता है ,परंतु वह मुस्कुराकर बात करता है ।वह तो दुख को भी सुख की तरह लेने की बात करता है ।कुल मिलाकर वह प्रसाद और महादेवी की गीतों को तरह दुख को सौंदर्यात्मक गरिमा देने में विश्वास करता है !
वह अत्यंत ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है ।मंदिर के प्रसाद बनने में ,गुरूद्वारा के लंगर में ,ईद के सेवई के लिए मस्जिद की मांग पर तुरत ही सिलींडर उपलब्ध कराता है ।आप समझ गए होंगे कि वह धर्मनिरपेक्ष भी है ,कुल मिलाकर भगवान से लेकर गॉड तक सबको खरीदे हुए है ,यदि कोई गरीब मजार ,ब्रह्मस्थान या अन्य अर्द्धधार्मिक जगह दिख जाए तो वहां भी अपनी उदारता का प्रदर्शन करने से परहेज नहीं करता ।
वह साहित्यिक भी होता है ।छोटा या बड़ा कोई भी कार्यक्रम हो ,बस आला अधिकारी का रूख स्पष्ट हो ।बिना कहे सुने पंडाल से लेकर काजूबादाम तक सब हाजि़र ।आला अधिकारी मंच पर और वह मंच से बाहर कार्यक्रम पर नजर गड़ाए ।दारू ,बीड़ी ,गुटखा ,कॉफी ,कैमरा सब पर उसकी नजर है ।इतना ही नहीं कवि ,कलाकारों को एक छोटी सी थैली भी पकड़ाता है ,और यह भेंट इतना निष्काम कि लिफाफे पर अपना नाम नहीं आला अधिकारी का नाम रहता है !
वह जेनुइन अफसर है ,अत्यंत बौद्धिक ।ज्यादा रोने या हँसने में विश्वास नहीं करता ।हमारे श्याम भैया के कहे अनुसार बड़े हाकिमों के घर न रोते न हँसते पहुंचता है ।वह मुंह 'बओने' पहुंचता है ।यदि साहब हँसते हैं तो वह हँसता है और साहब उदास होते हैं तो वह उदास हो जाता है ।नकल करने में वह डार्विन के इस सिद्धांत को साबित करता है कि बंदर और मनुष्य का कुछ आनुवांशिक संबंध है !
उसकी विरक्ति का मत पूछिए ।वह छोटे शहर ,कस्बों में रहते हुए पत्नी और बच्चों को लखनउ ,दिल्ली में शिफ्ट करने के लिए लात ,गाली खाता है ।उसका बेटा दारू ,अफीम खाते हुए भी बाप का नाम रौशन करने के लिए संघर्ष करता है ।बाप जिले में गाली खाकर कोटेदारों को जूता मार ,सहयोगियों को फूसलाकर बेटे के लिए कैपिटेशन फी का जुगाड़ करता है ।फेल होने पर वह बेटे के लिए प्रिंसिपल के यहॉं गिफ्ट पहुंचाता है ,यदि बेटा बलात्कार का आरोपी हो तो ये प्रयास बहुगुणित ही नहीं 'मल्टीबैगी'भी हो जाता है ।अफसोस अनुपस्थित होने पर जिला समझता है कि वह शिमला में ऐश कर रहा है ,पर वह अपनी पत्नी को लेकर देश के सबसे बड़े अस्पताल का चक्कर काटता रहता है !
वह विद्वान आदमी है ।गरीबी ,भ्रष्टाचार ,असमानता पर उसके मौलिक विचार हैं ,कभी कभी दुहरायी गयी भी नये चमक के साथ ।जिले के ठसाठस भरे पंडाल में रेडियोचित आवाज में अपनी आंखे कड़ी कर ,विशाल बाहुओं को उुपर कर आसमान की ओर उंगली उठाए जब कहता है कि आखिर घूस का पैसा देश में ही रहता है न !,तो लोग भूल जाते हैं कि किसी पूर्वप्रधानमंत्री का भी यही विचार था ।जब वह आंखें मूंदकर ,हाथ् नीचे कर बताता है कि कौन नहीं चाहता कि असमानता हटे ,तो पंडाल निरूत्तर हो जाता है ,और अगले दिन कई बेकारों को दस बीस हजार में कोटेदारी का लाइसेंस बांट बेरोजगारी को कुछ कम करके ही सांस लेता है !
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