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Sunday, 26 February 2012

प्रेम बाड़ी ही उपजता है धूमकेतु जी



आज का दिन आपके लिए विशेष है धूमकंतु जी ।आपके मउ से वर्धा की यात्रा तथा एक छोटे से कस्‍बे से निरंतर 'अभिनव कदम ' जैसी पत्रिका का निकालना जितना महत्‍वपूर्ण है ,उससे कम महत्‍वपूर्ण नहीं परिवार में एक बंगाली एवं पंजाबी बहू का सस्‍नेह स्‍वागत करना ।जिस गांव और कस्‍बे में आपने जन्‍म लिया है ,वहां स्त्रियों की सबसे अच्‍छी श्रेणी आज भी 'असूर्यपश्‍या' है ।घूंघट और बुर्के से पसीना पसीना हो रहा यह हिंदी क्षेत्र स्त्रियों के लिए नीतिशास्‍त्र बनाने में ज्‍यादा श्रम करता है ।यहां प्रेम की परिणति आज भी भागने ,मरने ,मारने में ही होती है । प्रेम यहां आज भी जीवन से अभिन्‍न नहीं है ।यह छुपने ,छिपाने की चीज है ,जिसे शादी से पहले किया जाता है ,वैसे शादी से पहले या शादी के बाद हो ,दोनों दृष्टि से यह चरित्रहीनता के रूप में ही देखा जाता है !

अपने दोनों सुशिक्षित बच्‍चों को आपने इतना आत्‍मनिर्भर ,विवेकी बनाया कि वे प्रेम को पहचान सकें ,तथा प्रेम एवं जीवन के पहलूओं को एक सिक्‍का बना सकें ।मूल ,गोत्र ,खाप से लुहलूहान यह हमारा समाज प्रेम और विवेक को कितना पहचान रहा है ,यह तो हम देख ही रहे हैं ।इसी समाज में जाति ही नहीं देश के भी दो सुदूर हिस्‍से की युवतियों को अपने परिवार का हिस्‍सा बनाना रोमांचित करता है ।आपने कबीर पर एक मुहर तो मारी कि प्रेम हाट पर खरीदी जाने वाली चीज नहीं है ,परंतु आपने यह भी दिखाया कि यह अपने बाड़ी का ही हिस्‍सा है ,बोना ,उगाना ,काटना सब अपना ही काम है ।अंशुमान एवं वंदना को वैवाहिक जीवन की मंगलकामना देते हुए 'हिंदी साहित्‍य संसार 'आपको सलाम करता है ।

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