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Wednesday, 29 December 2010

सम्‍पादक का अंत

ओ नि‍रंकुश स्‍वेच्‍छाचारी मनमौजी संपादक
राजतंत्र के समाप्‍त होने के बाद
झेल रहा तुझे दो सौ साल से
तेरा ही वाद, आंदोलन
तेरी कवि‍ता तेरा जीवन
तेरी ही आंख से देखता
वि‍रक्‍ति व समर्पण
तेरे ही यति,छंद,गीत
क्‍या वसंत क्‍या शीत
स्‍वार्थ का मि‍तकथन
हि‍त का अति‍रेक
कहां था इसमें
आलोचना का वि‍वेक ।
जि‍सको चाहा
छाप ली
इसी तरह लौटाई
जूही की कली ।
वादों आंदोलनों की महाशती
से वि‍चरता
मैं आ पहुंचा वाद के अंत तक
तुमने यह भी बताया कि‍
वि‍चारधारा व इति‍हास का भी अंत हो चुका है
तुने यह नहीं बताया कि‍ वि‍द्वता का भी अंत हो चुका है
खतम हो चुका है वह छन्‍नी
मर चुका है संपादक
संपादक के गल चुके गर्भ से ही
ब्‍लाग का जन्‍म हुआ ।




Wednesday, 8 December 2010

hindi sahitya: विदेह तो नहीं हो न

hindi sahitya: विदेह तो नहीं हो न: "यह कविता 9जुलाई 2008 को मेरे ग्राम करियन,समस्‍तीपुर में आयोजित मेरे पुत्रों चिरंजीवी सुन्‍दरम व शोभनम के मुंडन संस्‍कार के लिए वितरित आमंत्..."

विदेह तो नहीं हो न

यह कविता 9जुलाई 2008 को मेरे ग्राम करियन,समस्‍तीपुर में आयोजित मेरे पुत्रों चिरंजीवी सुन्‍दरम व शोभनम के मुंडन संस्‍कार के लिए वितरित आमंत्रण पत्र पर छपी थी ।

Tuesday, 7 December 2010

अर्णाकुलम की बेटियॉ

पूरी दुनिया में निकल चुकी हैं
अर्नाकुलम की बेटियॉ
केरल के अपने घरों में ताला डाल
हमारी किस्‍मत खोलने निकल चुकी हैं
अर्नाकुलम की बेटियॉ
सुदूर देहातों में मैथिली व बुन्‍देली बोल रही
मलयालम भूली नहीं हैं
अर्नाकुलम की बेटियॉ
पोंगल के साथ ही मकर संक्रांति मना रही
इलायची की गंध भूली नहीं है
अर्नाकुलम की बेटियॉ
मउनाथभंजन के डाक्‍टर जूड की तरह
पूरे देश की शिक्षा व सेहत पर नजर रख रही दीर्घतपा
वाकई कर्णधार हैं
अर्णाकुलम की बेटियॉ
काशी प्रयाग से बडा तीर्थ बन गया अर्णाकुलम
पुरूष देवदूतों से भी महान हैं
जिनकी युवा पत्नियां कर रही है सेवा गैर की
शायद स्‍वर्ग उतर आया है अर्णाकुलम में
देवता भी कुछ सीखना चाहते हैं

Saturday, 4 December 2010

मोहम्‍मद रफी और वह तबालची

मोहम्‍मद रफी जब गाते थे
उनकी ऑखें मुद जाती थी
लय के अनुसार ही
गिरता उठता था
उनका हाथ
उनके गजल को सुन
समुद्र के ह्रदय मे बुलबुले उठते थे
भजन से भू‍ल जाता था
आग भी गरमाहट
एक पागल सारंगी वाला
यह देख जोर जोर से हंसता है
वेसूरी ध्‍वनि निकाल वह
रफी को अचित करना चाहता है ।
वैसे तबला वादक
आ जाता है नेपथ्‍‍य में
जब रफी गाना शुरू करते है
वह तो तभी दिखता है
जब कोई पंक्ति समाप्‍त हो
या फिर कोई शुरू हो।
वह ढल गया है
रफी के गीत में
गीत से अलग दिखने की चाह नही उसमें ।
वह तो स्‍पष्‍ट कहता है
रफी‍ मॉ सरस्‍वती के पुत्र थे
बिना सरस्‍वती के आशीर्वाद के
कोई ऐसा गा ही नही सकता ।
उसका यह भी मानना है।
कि भगवान शंकर स्‍वयं
रफी को ताल की शिक्षा देते है।
भगवान शंकर कभी कभी
स्‍टूडियो में भी आते
जब करते हों रियाज अकेले में रफी
सारंगी वाले के पास कई जिन्‍न हैं
एक को भेजा था रफी के पास
जिस दिन वो गाने वाले थे
मन तडपत हरि दर्शन को आज
सारंगी वाला जोर देकर कहता है
कि यह मजहब विरोधी है
परन्‍तु गाना सुनते ही जिन्‍न को मुक्ति मिल गई
ऐसा कुछ लोग बताते हैं
सारंगी वाला चाहता है कि
रफी उन्‍हीं का गीत गाए
धुन भी उन्‍हीं का हो
रफी साहब ने देखा था वह गीत
वह कोई पुरानी मजहबी कहानी थी
जिसे कई छोटे बडे गायक दुहरा चुके थे
इस गीत में कोई नयापन नहीं था
वैसे सारंगीवाले का स्‍पष्‍ट मानना है
कि इस गीत में गजब की शक्ति है
सारंगी वाले का मानना है कि
रफी को जन्‍नत नहीं मिलेगी
क्‍योंकि उन्‍होंने बुतों के सम्‍मान में गाना गाया है
रहीम की आत्‍मा अब भी भटक रही है
कुछ ऐसा ही जूर्म उनका भी था
मौलवियों ने कर दिया था फोन
जन्‍नत के बाबूओं को
और लग गया था जन्‍नत में ताला
तबालची बहुत उदास है
वह इसे अफवाह मानता है
बनाता है अदभुत ताल
मूंदता है आंख
व सलाम करता है रफी को ।

Saturday, 20 November 2010

उदयनाचार्य के गॉव से


यह कविता जून 2007 को होने वाले मेरे भतीजे के उपनयन संस्‍कार के निमंत्रण पत्र में छपी थी ।कविता छवि (फोटो) के रूप में प्रस्‍तुत है

Friday, 19 November 2010

मॉ

हमें तुक लय देते देते
हो गई वह नीरस गदयाभास
मॉ का शैशव है प्रागैतिहास
जवानी के साक्ष्‍य
गहनों में मौजूद है
सबसे पुराने सन्‍दूक में बन्‍द है
झुर्रियों ने कर दिया है छोटा
उसकी चहारदीवारी को
बेपर्द दरवाजे पर बैठ
बेसूरे गानों के साथ
सुला रही मेरे बच्‍चों को
मोटे चश्‍मों के पीछे दत्‍तचित्‍त
थरथराते हाथों से हटा रही
चावल में से कंकड
बना रही मेरे बच्‍चों का भविष्‍य ।

Tuesday, 9 November 2010

फेसबुक पर मिले राजेन्‍द्र यादव

फेसबुक पर मिले राजेन्‍द्र यादव नामवर और कई मातवर
मैं कसम से कहता हूं
वे मेरे मित्र बन गए हैं
शायद वे मित्रधर्म निबाहेंगे
मेरी बुरी कविता भी छापेंगे
संभव हो बालसंगी गौरीशंकर का स्‍थान लें वो
मेरे कच्‍चे सूर को भी सराहे
बुखार में पारासिटामोल खिलाए
या मेरी पत्‍नी से सुलह कराएं
यही नहीं बद्रीनारायण गीत और धीरेन्‍द्र भी मिल गए हैं
वैसे उदयप्रकाश गौरीनाथ ने मुझे घास नहीं डाला है
या तो बहुत व्‍यस्‍त होंगे या तेलपानी का बोलबाला है
कुछ सुन्‍दरियों के साथ ही आशीष त्रिपाठी ने भी जबाव नही दिया है
वही जिसने नामवर के भाषण को चार किताब में बाइंड किया है
अजय तिवारी भी घमंडी है
दोस्‍ती है कि शब्‍जी मंडी है
कहॉ है गुरू गोपाल राय और विश्‍वनाथ त्रिपाठी
मित्र मिथिलेश और के के भी नही है
टेमा में रह रहे प्रेम भाई पता नही फेसबुक जानते हैं या नहीं
फुच्‍चु लुटकुन राघव और अशोक मित्र बढाने में व्‍यस्‍त हैं
पता नही जब राजेन्‍द्र यादव ने मेरी दोस्‍ती कबूल की होगी
तब क्‍या सोचा होगा
मुस्‍कुराया होगा
या ंंंंंंंंंंं






मेरे गुरू गोपाल राय और विश्‍वनाथ त्रिपाठी

Thursday, 4 November 2010

लक्ष्‍मी ये आपका नही है

नाराज नही हो विष्‍णुप्रिये
मेरे दीवार पर टॅगी हाथी युगल आपका नहीं है
फूलजल अर्पित नहीं किया इसने
ऐरावत का ऐश्‍वर्य इसमें मत देखें
गणेश का सर इसके पूर्वजों से नहीं बना

लीलाधर ने इसे कब बचाया 

यह कलियुग का चुनावी हाथी भी नहीं है
यह तो अपने आप में ही मत्‍त हाथी हथिनी है
नवदम्‍पति है क्‍या
क्षमा करना लक्ष्‍मी
कोई रार तो नहीं कर रहा
पर सोच नही पा रहा

तुमको पूजूं या तुम्‍हारे हाथी को 

वैसे मेरी हाथी को किसी अनाम कुम्‍हार ने बनाया है
इसका कलात्‍मक मूल्‍य नगण्‍य है  






Friday, 29 October 2010

फूल और आदमी

बच्‍चे बस फूल को ही देखते

और फूल सा ही खिलते हैं

पॅखुडियो का कटीलापन भाता है किशोरो को

युवा खोजते है फूलो मे गंध

गंधमे भी सेर भर मादकता

इन सबसे अलग प्रौढ फूलो का अर्क बनाना चाह

े उन्‍हे पता है फूल पत्‍ते पराग बीज की सच्‍चाई

बिनदत्‍ता बुढवा हंसता है आख मून्‍द मून्‍द कर

बोलता है उंगली घूमा घूमा कर '' उसे क्‍या पता .........''

क्‍योंकि उसे सब कुछ पता है 

Thursday, 28 October 2010

nirala aur vartman ka atank

nirala ki kavitaon par anya chhayavadi kavion ki tulna mein vartman ka jyada prabhav hai .yeh anshtah unki antardrishti evam anshtah unki jindagi ke karan hai .jiye gaye jeevan ne unki kavitaon mein sangharsh aur saundarya ka swaroop nischit kiya .tathya aur vivaran ke star par pant ki kavita mein gandhi, marx,arvind evam vibhinna andolanon ki purjor upasthiti hai,par in vivaranon ka sahityik mahatwa simit hai.pant ka mahatwa in rachnaon ke karan nahin hai.doosri ohr nirala ki aisi kavitayen bhi adbhut saundarya se paripurna hai .

nirala aur vartman ka atank

nirala ki kavitaon par anya chhayavadi kavion ki tulna mein vartman ka jyada prabhav hai .yeh anshtah unki antardrishti evam anshtah unki jindagi ke karan hai .jiye gaye jeevan ne unki kavitaon mein sangharsh aur saundarya ka swaroop nischit kiya .tathya aur vivaran ke star par pant ki kavita mein gandhi, marx,arvind evam vibhinna andolanon ki purjor upasthiti hai,par in vivaranon ka sahityik mahatwa simit hai.pant ka mahatwa in rachnaon ke karan nahin hai.doosri ohr nirala ki aisi kavitayen bhi adbhut saundarya se paripurna hai .

Wednesday, 12 May 2010

hindi alochna


Hindi alochna ko vaishwik sandarbh mein hi viksit hona hoga. apni jatiya visishtta ko banaye rakhkar vishwa sahitya ke saath chalna sabse badi chunouti hai.