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Wednesday, 18 December 2013

साहित्‍य के पिचकू

मुझको अपनी बात कहने तो दीजिए ,मुझे डराइए मत ,मुझे उनका कद,वजन,प्रतिष्‍ठा ,प्रभाव से परिचय मत कराइए ,थोड़ा बहुत हम भी जानते हैं ,निस्‍संदेह वे प्रभावशाली लोग हैं ,उनकी एक टिप्‍पणी से हम जैसे लोगों का जीवन(लेखन नहीं) आरामदेह हो सकता है ।उनका एक संकेत ,सिफारिशी चिट्ठी हमारा भाग्‍योदय कर सकता है ,परंतु जब हम इस लाभ-लोभ की ओर झुकने की बजाय अपेक्षाकृत ईमानदार रूख अपनाते हैं ,तो आप समर्थन की बजाय हमें धमकाते हैं ,और हिंदी के उन महापुरूषों के कुकृत्‍यों पर ईमानदारी पूर्वक चर्चा करने की बजाय उनके पहले के रिकार्ड पर बात करना पसंद करते हैं ।


                                              मुझे जानकारी है कि आप में से बहुतों के एकाधिक किताबें छप चुकी है , आप में से कुछेक पुरस्‍कृत भी चुके हैं ,आप में से कई इस पुरस्‍कार और सम्‍मान के वाकई हकदार हैं ,परंतु इसका मतलब ये नहीं है कि रास्‍तों का विकल्‍प समाप्‍त हो गया है । हमें उनसे लड़ते-झगड़ते आगे बढ़ने दीजिए ,पाद-सेवन ,अर्चन-पूजन की बजाय नए रास्‍तों को सामने आने दीजिए ,ऐसे राहियों को चना-चबेना भले न दीजिए ,थोड़ा आंख तो मूंद सकते हैं  । व्‍यभिचारियों के बिस्‍तर बनने से खुद को बचाईए ।हम समझते हैं आपकी आदत हो चुकी है ,परंतु कभी-कभी परहेज भी दवा होती है ।


                                                          हम किसको कोसें ,सरसो पैदा करने वाले किसान को ,तेल पेरने वाले तेली को ,बोतल,रैपर,पिचकू,स्‍प्रे में उपलब्‍ध कराने वाले बनिये को या आपके उस एप्रोच को ।आपके पूज्‍य को भी शायद यह इतना बुरा लगे ,जितना कि आपको लगता है । 

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