इस शहर ने आज पहली बार औरतों का जुलूस देखा ।वैसे तो औरतों की क्रमबद्ध पंक्तियां विष्णु यज्ञ या फिर साईं बाबा के जुलूस में निकलती रही है ,जिसे शोभा यात्रा या और भी सुरूचिपूर्ण नाम दिया जाता रहा है ,पर औरतों का जुलूस देखकर शहर को अच्छा नहीं लगा था ।शहर तो लड़कियों को डांस करते देख या फिर बिना बुर्का या घूंघट में औरतों को देख चिढ़ जाता था पर ये तो अति थी ।औरतें जुलूस में नाच रही थी ,और औरतों के जागने की बात कर रही थी ,उन्होंने आधी आबादी ,भ्रूण परीक्षण ,लड़कियों के शिक्षा ,महिलाओं के अधिकार जैसे विषय पर मनमोहक नारे बनाए थे ,और शहर की शांति भंग करते हुए 'आवाज दो हम एक हैं ' की नारा लगा रही थी ।मेरे एक मित्र ने उनके साड़ी ,ब्लाउज की कीमत लगाते हुए कहा कि वे निम्न -मध्य वर्ग की महिलाएं थी ,कुछ तो स्पष्टत: निम्न वर्ग की लग रही थी ,जो केवल चिल्लाने के लिए किराए पर लाई गई थी ।एक मित्र ने उनके चप्पलों पर गौर फरमाया ,निष्कर्ष यही था कि ये आम तौर पर निम्न वर्ग की महिलाएं है ,तथा जुलूस स्वत:स्फूर्त न होकर प्रायोजित है ।सड़क किनारे की दुकानों पर तथाकथित उच्च वर्ग की महिलाएं शांतिपूर्ण आनंद के साथ खरीदारी करती रही ,कॉलेज की छात्राऍं भी मुंह बिचकाते हुए अपने अपने कामों में मगन रही ।कुछ पुलिसकर्मियों के साथ जुलूस आगे बढ़ती रही ,भ्रूण हत्या विरोधी नारे गूंजती रही ,पर शायद डॉक्टर लोग जुलूस की आवाज को नजरअंदाज करते हुए गर्भपात कराने में बिजी रहे ।जुलूस का आनंद तो शायद तब आता जब ये महिलाऍं हँसिये ,खुरपी से उन डॉक्टरों की अँतडि़या बाहर निकाल लेते ,जो बस पुत्रजन्म को मैनेज करने के लिए अल्ट्रासाउंड और एबार्शन करबाते हैं..............
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