कोई लिखा ,अधलिखा ,कलम से लिखा ,पेंसिल से लिखा ,अपना लिखा ,किसी अधिकारी का आदेश ,अधीनस्थों की आख्या ,हाईकोर्ट का जजमेंट ,सरकार की रूलिंग ,सहकर्मियों के लूपहोल्स के साक्ष्य सभी संग्रहित ।फाईल मे ,बिना फाईल किसी डायरी मे ,किसी किताब में ,जो ज्यादा पुरानी हो गई तो अटैची में ,जो बहुत पुरानी हो गई तो स्टोर रूम में ,और साल दो साल बाद एक दो बंडल गांव में रख दिए ,बाबूजी-मां के पास ।पता नहीं कब किसकी जरूरत हो जाए ,सो किसी कागज को फाड़ते ,कबाड़ी वाले से बेचते ,डस्टबिन मे डालते या फिर रद्दी को फेकते वक्त हरदम एक डर बना रहा ।एक बार तो पत्नी ने डस्टबिन में शाम को ही कूड़ा डाल दिया था ,पर सुबह को वह एक-एक रद्दी को जोड़ता रहा ।उसकी इस आदत को पत्नी भी जान गई थी ,सो हरेक कागज(चाहे कितना भी रद्दी क्यों न हो)
को डस्टबिन में डालते वक्त वह भी पूछ लेती थी 'किसी काम का तो नहीं' ,और यह चिंता ,परेशानी केवल कागजों को लेकर हो ,यह बात नहीं थी ,संबंधों को लेकर भी थी ।घर,परिवार ,किसिम किसिम के दोस्त ,दूर-दराज के संबंधी सब कागजों की ही तरह उसके जेहन में ठूसे हुए थे ।बेशक कुछ फेके जाने लायक थे ,पर उसको लगता था कि शायद कुछ काम हो जाए इनका या फिर.............
को डस्टबिन में डालते वक्त वह भी पूछ लेती थी 'किसी काम का तो नहीं' ,और यह चिंता ,परेशानी केवल कागजों को लेकर हो ,यह बात नहीं थी ,संबंधों को लेकर भी थी ।घर,परिवार ,किसिम किसिम के दोस्त ,दूर-दराज के संबंधी सब कागजों की ही तरह उसके जेहन में ठूसे हुए थे ।बेशक कुछ फेके जाने लायक थे ,पर उसको लगता था कि शायद कुछ काम हो जाए इनका या फिर.............
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